हरिद्वार, जहां गंगा की पवित्र धारा भक्तों के दिलों को छूती है, वहां एक ऐसी कहानी सामने आई है जो भक्ति और हौसले की अनूठी मिसाल पेश करती है। यह कहानी है एक दिव्यांग कांवड़िया की, जिसने शारीरिक कमजोरी को अपने विश्वास के सामने बौना साबित कर दिया। दिल्ली से अपने दो साथियों के साथ कांवड़ लेने आए इस शिव भक्त की कहानी हर उस इंसान के लिए प्रेरणा है जो मुश्किलों के सामने हार मान लेता है। आइए, इस अनोखी यात्रा को करीब से जानें।
एक पैर, एक साइकिल, और अटूट विश्वासइस कांवड़िया का एक पैर कृत्रिम है, जिसके कारण वह पैदल चलने में असमर्थ है। लेकिन क्या यह कमजोरी उनकी भक्ति को रोक पाई? बिल्कुल नहीं! इस भक्त ने अपनी कमर पर गंगा जल का पवित्र कलश बांधा और एक छोटी साइकिल पर बैठकर अपनी यात्रा शुरू की। साइकिल का पैडल पूरी तरह न चला पाने के बावजूद, वे एक पैर से साइकिल को घसीटते हुए आगे बढ़ रहे हैं। उनकी यह यात्रा न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक दृढ़ता का भी प्रतीक है। हरिद्वार की सड़कों पर यह दृश्य देखकर हर कोई हैरान है कि कैसे एक व्यक्ति इतनी कठिनाइयों के बावजूद अपनी मंजिल की ओर बढ़ रहा है।
मां की सलामती के लिए 220 किलोमीटर का संकल्पइस कांवड़िया का कहना है कि वे अपनी मां की सलामती के लिए यह कांवड़ यात्रा कर रहे हैं। 220 किलोमीटर की इस लंबी यात्रा को पूरा करने का उनका संकल्प उनके विश्वास की गहराई को दर्शाता है। हर कदम, या यूं कहें, हर साइकिल की घसीट उनके प्रेम और श्रद्धा का प्रतीक है। उनके साथी भी उनके इस जज्बे की तारीफ करते नहीं थकते। इस यात्रा में उनके साथ चल रहे दोस्तों का कहना है कि उनका यह हौसला देखकर उन्हें भी आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है।
भक्ति का जुनून और समाज के लिए संदेशयह कहानी केवल एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि उस भावना की है जो हरिद्वार की कांवड़ यात्रा को खास बनाती है। हर साल लाखों लोग गंगा जल लेने के लिए हरिद्वार आते हैं, लेकिन इस दिव्यांग कांवड़िया की कहानी सबसे अलग है। यह हमें सिखाती है कि सच्ची भक्ति और दृढ़ इच्छाशक्ति के सामने कोई भी बाधा बड़ी नहीं होती। समाज के लिए यह एक संदेश है कि हमें अपनी कमजोरियों को कमजोरी नहीं, बल्कि एक चुनौती के रूप में देखना चाहिए।
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