धर्मशाला, 28 जून (Udaipur Kiran) । ऊना से विधायक एवं पूर्व मंत्री सतपाल सिंह सत्ती ने वर्तमान सरकार की अफसरशाही पर सवालिया निशान लगाते हुए कहा कि वर्तमान कांग्रेस सरकार में भ्रष्टाचार अपनी चरम सीमा पर है। उन्होंने शनिवार को जारी एक प्रेस बयान में कहा कि निशांत सरीन जो कि धर्मशाला में बतौर सहायक दवा नियंत्रक (एडीसी) कार्यरत हैं, के खिलाफ ईडी को आय से अधिक संपत्ति संबंधित मामले में चल रही जांच के अंतर्गत अहम दस्तावेज हाथ लगे हैं जो प्रदेश सरकार के भ्रष्टाचार को संरक्षण की ओर ईशारा कर रहे हैं और यह एक गंभीर मामला है।
भाजपा नेता ने कहा कि निशांत सरीन उनके पारिवारिक सदस्यों व सहयोगियों के हिमाचल, पंजाब और हरियाणा स्थित 7 आवासीय, व्यापारिक परिसरों और सरकारी कार्यालयों में तलाशी के दौरान ये सबूत हाथ लगे हैं। जांच एजेंसी को कंपनी के बैंक खातों और सरीन के पारिवारिक सदस्यों के वित्तीय लेन देन से यह बात सामने आई है कि पंचकूला स्थित एक दवा कंपनी में सरीन की पत्नी की 95 प्रतिशत हिस्सेदारी भी है। इसके अतिरिक्त 40 से अधिक बैंक खाते, 3 महंगी कारें, एफ.डी.आर. और 3 लाॅकर जब्त किए गए हैं। साथ ही उनके चंडीगढ़ स्थित आवास से 60 से अधिक शराब की बोतलें भी मिली है।
दवाई की दुकान का लाईसेंस रिन्यू करवाने के मांगता था 50 हजार : सत्ती
सतपाल सत्ती ने कहा कि कांगड़ा, चम्बा व ऊना क्षेत्र के दवा विक्रेता और दवाई मैनुफैक्चरिंग की यूनिट्स इस अधिकारी के क्षेत्राधिकार के अंतर्गत आते थे और ये सभी से पैसों की मांग करता था जिसकी वजह से ये सभी बहुत परेशान थे। इन क्षेत्रों के दवा विक्रेताओं ने उन्हें फोन पर बताया कि कथित सहायक दवा नियंत्रक उनसे दवाई की दुकान का लाईसेंस रिन्यू करवाने के लिए 50-50 हजार रूपए की मांग करता है और जब दवाई के दुकानदारों ने इस कथित अधिकारी की पैसे देने की मांग का विरोध किया तो उसने उन दवा विक्रेताओं को बताया कि उसने धर्मशाला में इस पद पर तैनाती के लिए 30 लाख रूपए दिए हैं और उसे हर महीने 5 लाख रूपए ऊना और 5 लाख रूपए शिमला देने पड़ते हैं। इस मामले को विधानसभा में गंभीरता से उठाया था और सरकार से इस मामले की जांच की मांग की थी परन्तु सरकार ने इस संबंध में कोई कार्यवाही न करके एक संवेदनहीन सरकार होने का परिचय दिया।
सतपाल सत्ती ने सरकार से जानना चाहा कि आखिर कांग्रेस का वो कौन नेता है, जिसने ये 30 लाख लिए हैं ? कांग्रेस का वो कौन नेता है जिसे 5 लाख रूपए ऊना और 5 लाख रूपए शिमला दिए जाते थे ? इस बात की गहन जांच आवश्यक है। उन्होंने कहा कि विधानसभा में इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाने के बावजूद सरकार ने इस संबंध में कोई ठोस कदम नहीं उठाया।
सतपाल सत्ती ने सरकार से पूछा कि आखिरकार ऐसी कौन सी मजबूरी थी कि माननीय उच्च न्यायालय के आदेशों की अवहेलना करते हुए ऐसे भ्रष्ट अधिकारी को इतने महत्वपूर्ण पद पर बिठा दिया। जबकि यह व्यक्ति पहले भी भ्रष्टाचार के मामले में संलिप्त पाया गया है और इसकी गिरफ्तारी भी हुई थी। उन्होंने कहा कि इस प्रकार के भ्रष्ट अधिकारियों की वजह से हिमाचल में बनने वाली दवाओं के सैम्पल बार-बार फेल होते हैं और हिमाचल का नाम बदनाम होता है।
(Udaipur Kiran) / सतिंदर धलारिया
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