राजस्थान सरकार एक बार फिर संभावित खनन घोटाले को लेकर सवालों के घेरे में आ गई है। राज्य के हनुमानगढ़ जिले में पोटाश खनन के दो ब्लॉक्स को अलग-अलग दरों पर आवंटित करने की तैयारी की जा रही है। एक तरफ जहां सरकारी कंपनी ऑयल इंडिया लिमिटेड को खनन लाइसेंस 15% रेवेन्यू ऑफर पर दिया जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ निजी कंपनी हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड को महज 3% ऑफर पर लाइसेंस जारी करने की योजना बनाई गई है।
इस फैसले से राज्य सरकार को 500 करोड़ रुपये से अधिक के संभावित राजस्व नुकसान की आशंका जताई जा रही है। मामला जितना तकनीकी है, उतना ही संवेदनशील भी—क्योंकि सवाल उठ रहा है कि एक ही ज़मीन पर, एक जैसे खनिज संसाधन होने के बावजूद रेट्स में इतना बड़ा अंतर आखिर कैसे?
क्या है पूरा मामला?हनुमानगढ़ जिले की हनुमानगढ़ तहसील के झंडावाली और जार्कियान गांवों में पोटाश खनन के दो ब्लॉक्स की नीलामी की जा रही है। दोनों ब्लॉक समानांतर भौगोलिक क्षेत्र में हैं और वहां पाए जाने वाले पोटाश की गुणवत्ता में भी कोई बड़ा अंतर नहीं है। इसके बावजूद सरकार ने हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड को केवल 3% रेवेन्यू ऑफर पर कंपोजिट लाइसेंस देने की प्रक्रिया शुरू कर दी है, जबकि ऑयल इंडिया लिमिटेड को 15% रेवेन्यू ऑफर के आधार पर एलओआई जारी की जा रही है।
यह अंतर अपने आप में चौंकाने वाला है और इससे सरकार को करोड़ों रुपये के नुकसान की संभावना है।
नीलामी में पारदर्शिता, फिर भी सवालखनन विभाग की ओर से दावा किया जा रहा है कि यह पूरी प्रक्रिया ट्रांसपेरेंट तरीके से की गई है, लेकिन सवाल यह है कि अगर दोनों ब्लॉक्स की स्थिति और खनिज संसाधन लगभग समान हैं, तो फिर रेवेन्यू शेयरिंग रेट में इतना बड़ा अंतर क्यों? यह अंतर न सिर्फ नीति पर सवाल उठाता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि कहीं ना कहीं निजी कंपनी को लाभ पहुंचाने की कोशिश की जा रही है।
क्या है पोटाश और क्यों है अहम?पोटाश एक क्रिटिकल और स्ट्रैटेजिक मिनरल माना जाता है, जिसका उपयोग मुख्य रूप से उर्वरक बनाने में होता है। भारत में इसकी घरेलू आपूर्ति कम होने के चलते आयात पर निर्भरता बनी रहती है। ऐसे में पोटाश ब्लॉक्स की नीलामी एक रणनीतिक निर्णय मानी जाती है। इस स्थिति में अगर सरकार खुद के खजाने को नजरअंदाज करके निजी कंपनी को लाभ देती है, तो यह जनता के पैसों से सीधा खिलवाड़ है।
जनता के पैसे की कीमत कौन समझेगा?वर्तमान में सरकारें जहां एक-एक रुपये की बचत करने की बात करती हैं, वहीं राजस्थान में इस तरह के निर्णयों से राज्य को करोड़ों का नुकसान झेलना पड़ सकता है। अगर सरकारी कंपनी 15% रेवेन्यू शेयरिंग दे सकती है, तो निजी कंपनी को महज 3% पर लाइसेंस क्यों?
सवाल यह भी है कि क्या यह पूरी प्रक्रिया जांच के दायरे में आनी चाहिए? क्या खनन मंत्रालय और संबंधित अधिकारियों से इस फैसले का स्पष्टीकरण नहीं मांगा जाना चाहिए?
राजस्थान का यह खनन मामला सिर्फ एक वित्तीय निर्णय नहीं, बल्कि नीति और नैतिकता का मुद्दा है। यदि एक जैसी स्थिति में दो कंपनियों को अलग-अलग रेट पर लाइसेंस दिए जाते हैं, तो यह स्पष्ट रूप से पारदर्शिता के खिलाफ है। जनता को चाहिए कि वे इस मामले में जवाब मांगें और सरकार को चाहिए कि वह निष्पक्ष जांच कराकर स्थिति स्पष्ट करे।
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