नई दिल्ली: भारत द्वारा 6 मई को पाकिस्तान और पीओके में आतंकी ठिकानों पर किए गए मिसाइल हमले की हर तरफ चर्चा हो रही है। भारत ने विशेष मिसाइलों और हथियार प्रणालियों का इस्तेमाल किया जो निर्दोष नागरिकों को नहीं, बल्कि आतंकवादियों और उनके लॉन्च पैडों को निशाना बनाकर नष्ट कर सकते थे। विशेषज्ञों के अनुसार, भारत ने सटीक हमला करने वाली हथियार प्रणाली का इस्तेमाल किया। यह एक वारहेड प्रणाली है जो लक्ष्य क्षेत्र को ही लक्ष्य बनाती है। इस प्रणाली का लाभ यह है कि लक्ष्य के अलावा अन्य को न्यूनतम क्षति होती है। यही कारण है कि आतंकवादी ठिकानों के अलावा अन्य इमारतों या लोगों को कोई नुकसान नहीं हुआ। इसका उपयोग उन्नत जीपीएस, आईएनएस और लंबी दूरी के लक्ष्यों को भेदने के लिए किया जाता है। इस प्रणाली में लक्ष्य से कुछ मीटर की दूरी पर रहते हुए जीपीएस और लेजर या इंफ्रारेड रडार के माध्यम से मार्गदर्शन लिया जाता है, जिससे लक्ष्य पर सटीक निशाना लगाया जा सकता है।
उल्लेखनीय है कि भारत ने जो मिसाइल हमला और बमबारी की, उसमें राफेल के अलावा एलएमएस ड्रोन का भी इस्तेमाल किया। इसे कम लागत वाला लघु झुंड ड्रोन भी कहा गया है। इसे प्रकाश हथियार प्रणाली के नाम से भी जाना जाता है। यह एक प्रकार की ड्रोन प्रणाली है जो अपनी लक्ष्य भेदने की क्षमता के लिए जानी जाती है। इस ड्रोन को आत्मघाती ड्रोन भी कहा जाता है। यह काफी देर तक हवा में मंडराता रहता है और फिर लक्ष्य निर्धारित कर उससे टकराता है। इस वजह से इसे आत्मघाती ड्रोन भी कहा जाता है। इन ड्रोनों को आतंकवादी ठिकानों, हथियार डिपो, रडार प्रणालियों और अन्य बुनियादी ढांचे को नष्ट करने के लिए विकसित किया गया है।
ये ड्रोन झुंड बनाकर काम करते हैं।
इस ड्रोन की खासियत यह है कि यह झुंड बनाकर काम करता है। दुश्मन पर हमला करने के लिए एक साथ कई ड्रोन सक्रिय किए जा सकते हैं। ये ड्रोन रडार प्रणालियों को धोखा देने और उनसे बचने में कारगर साबित हुए हैं। इसकी दूसरी बड़ी विशेषता यह है कि यह ड्रोन एक साथ विभिन्न कोणों से हमला कर सकता है। यह दुश्मन के हथियारों, कमांड सेंटरों और रडार जैसी संरचनाओं को नष्ट कर सकता है। इन ड्रोनों को डीआरडीओ ने न्यूस्पेस रिसर्च एंड टेक्नोलॉजी की मदद से विकसित किया है। इस ड्रोन की कीमत पारंपरिक ड्रोन की तुलना में काफी कम है।
उच्च रिज़ॉल्यूशन कैमरा और जीपीएस से लैस
यह ड्रोन सिर्फ हथियार ले जाने वाला नहीं है। यह ड्रोन उच्च-रिज़ॉल्यूशन कैमरा और जीपीएस और नेविगेशन सिस्टम से लैस है। यह थर्मल इमेजिंग सिस्टम से भी सुसज्जित है। हाल ही में विकसित ड्रोन एआई से लैस हैं, जो स्थिति के आधार पर स्वयं निर्णय लेने और हमला करने में सक्षम हैं। इन ड्रोनों का उपयोग सूचना एकत्र करने, लक्ष्यों पर नज़र रखने और सटीक हमले करने के लिए किया जाता है। ऐसी खबरें हैं कि इस ड्रोन का इस्तेमाल आतंकवादियों पर नज़र रखने और ऑपरेशन सिंदूर में बम गिराने के लिए किया गया था। इस ड्रोन को तीनों स्थानों से प्रक्षेपित किया जा सकता है: हवा, पानी और जमीन।
इस ड्रोन का जापान से है खास कनेक्शन
इस ड्रोन को जापान में कामिकेज़ ड्रोन के नाम से जाना जाता है। कामी और काजी दो अलग जापानी शब्द हैं। कामी का अर्थ है ईश्वर और काजी का अर्थ है वायु। इसका अर्थ है दिव्य वायु या भगवान की हवा। तथ्य यह है कि इस शब्द का प्रयोग जापान द्वारा युद्ध कौशल के रूप में किया गया था। जब जापान और अमेरिका के बीच द्वितीय विश्व युद्ध हुआ, तब जापान के पास उन्नत तकनीक नहीं थी। इसलिए उन्होंने अपने पायलटों को कामिकेज़ के रूप में प्रशिक्षित किया। उन्होंने अमेरिका के पर्ल हार्बर पर भीषण बमबारी की और फिर अमेरिकी बंदरगाह शहरों और युद्धपोतों पर आत्मघाती विमान उड़ाना शुरू कर दिया। तब से यह परंपरा चली आ रही है। एलएमएस ड्रोन भी इसी तरह काम करता है। इसका पहली बार प्रयोग 1980 के दशक में विस्फोटक ले जाने के लिए किया गया था। 1990 से इसका इस्तेमाल आत्मघाती ड्रोन के रूप में किया जा रहा है। शुरुआत में इसकी रेंज कम थी, लेकिन अब इसे लंबी दूरी पर भी इस्तेमाल करने लायक बना दिया गया है।
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