भारतीय पौराणिक कथाओं में त्रिदेव अर्थात् ब्रह्मा, विष्णु और महेश को सृष्टि, पालन और संहार के अधिपति माना गया है। लेकिन, क्या इन तीनों में से कोई एक श्रेष्ठ है?
इस प्रश्न का उत्तर ढूंढने के लिए ऋषि-मुनियों ने एक बार महर्षि भृगु को यह जिम्मेदारी सौंपी। यह कथा त्रिदेव की परीक्षा और उनके गुणों को उजागर करती है।
ब्रह्माजी की परीक्षा
महर्षि भृगु सबसे पहले ब्रह्मलोक पहुंचे। वहाँ पहुँचने पर उन्होंने ब्रह्माजी को न तो प्रणाम किया, न ही उनकी स्तुति की। ब्रह्माजी यह व्यवहार देखकर क्रोधित हो गए। उनका मुख लाल हो गया और आंखों में गुस्से की ज्वाला भड़क उठी। लेकिन यह सोचकर उन्होंने अपने क्रोध को नियंत्रित कर लिया कि भृगु उनके ही पुत्र हैं।
इस घटना से महर्षि भृगु को यह उत्तर मिल गया कि ब्रह्माजी में क्रोध की प्रधानता है।
भगवान शिव की परीक्षा
इसके बाद महर्षि भृगु कैलाश पहुँचे। भगवान शिव उन्हें देखकर प्रसन्न हुए और आलिंगन करने आगे बढ़े। लेकिन भृगु ने उनका आलिंगन अस्वीकार कर दिया और बोले, 'महादेव! आप धर्म की मर्यादा का उल्लंघन करते हैं और दुष्टों को वरदान देकर संसार को संकट में डालते हैं। इसलिए मैं आपका आलिंगन नहीं कर सकता।'
भृगु के इन शब्दों से भगवान शिव क्रोधित हो उठे। उन्होंने त्रिशूल उठा लिया और भृगु को मारने के लिए तैयार हो गए। लेकिन माता सती ने समय रहते हस्तक्षेप किया और भगवान शिव का क्रोध शांत किया। इस घटना से भृगु ने समझ लिया कि शिवजी में क्रोध की तीव्रता अधिक है।
भगवान विष्णु की परीक्षा
अंत में महर्षि भृगु वैकुण्ठ पहुँचे। वहाँ भगवान विष्णु माता लक्ष्मी की गोद में विश्राम कर रहे थे। भृगु ने उनके वक्ष पर पैर से प्रहार किया। भगवान विष्णु तुरंत उठकर खड़े हो गए। उन्होंने न तो क्रोध किया और न ही कोई शिकायत की।
बल्कि, भगवान विष्णु ने हाथ जोड़कर कहा, 'महर्षि! आपके चरणों पर चोट तो नहीं लगी? क्षमा करें, मैं आपको आते हुए देख नहीं पाया, इसलिए आपका स्वागत नहीं कर सका। आपके चरणों का स्पर्श मेरे लिए पवित्रता का प्रतीक है।' इतना कहकर उन्होंने भृगु के चरण दबाने शुरू कर दिए।
भगवान विष्णु का यह विनम्र और प्रेमपूर्ण व्यवहार देखकर महर्षि भृगु की आँखों से आँसू बह निकले। उन्हें समझ आ गया कि भगवान विष्णु में सबसे अधिक क्षमा, धैर्य और करुणा है।
महर्षि भृगु ने अपनी परीक्षा का विवरण ऋषि-मुनियों को सुनाया। सभी ऋषियों ने निष्कर्ष निकाला कि भगवान विष्णु त्रिदेवों में सबसे श्रेष्ठ हैं। उनके धैर्य और क्षमाशीलता ने यह साबित कर दिया कि वे वास्तव में पालनकर्ता और करुणा के प्रतीक हैं। तभी से ऋषि-मुनि और भक्तजन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करने लगे।
यह कथा हमें यह सिखाती है कि श्रेष्ठता केवल शक्ति और ज्ञान में नहीं, बल्कि धैर्य, क्षमा और करुणा में निहित होती है। भगवान विष्णु का चरित्र हमें यह प्रेरणा देता है कि जीवन में हमें सहिष्णु और दयालु बनना चाहिए।
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