बीजिंग: राष्ट्रपति शी जिनपिंग 2013 के बाद से चीन की सत्ता में 'सुप्रीम लीडर' की भूमिका में रहे हैं। 2018 में जब उन्होंने राष्ट्रपति पद की समयसीमा खत्म करने का फैसला किया तो उन्हें 'लीडर फॉर लाइफ' तक कह दिया गया। लेकिन हाल ही में सामने आई कुछ घटनाएं यह संकेत दे रही हैं कि शायद शी जिनपिंग अब धीरे-धीरे अपनी ताकत को संस्थागत ढांचे में बांटने या किसी संभावित उत्तराधिकारी के लिए रास्ता तैयार करने की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं। 30 जून को चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CPC) के पोलित ब्यूरो की बैठक में कुछ नए नियमों पर चर्चा की गई है, जिनमें पार्टी की प्रमुख फैसला लेने वाली और समन्वयकारी संस्थाओं की भूमिका, ढांचा और उनके ऑपरेशन को लेकर कुछ नये स्टैंडर्ड तय किए गये हैं। इस बैठक की अध्यक्षता खुद शी जिनपिंग ने की थी, लेकिन यह कदम चीन की राजनीति में गहरे अर्थों वाला माना जा रहा है।
चीन की सरकारी शिन्हुआ न्यूज ने इस बैठक को लेकर बताया है इस बैठक से इन संस्थानों से प्रमुख राष्ट्रीय फैसलों को लेकर नेतृत्व और कॉर्डिनेशन बढ़ाने की उम्मीद है। लेकिन ऑब्जर्वर्स इस बैठक को इतने सामान्य तरीके से नहीं देख रहे है। कई एक्सपर्ट्स का मानना है कि इस बैठक का मकसद चीन के लिए अगले लीडर खोजने की बहुत लंबी प्रक्रिया की शुरूआत हो सकती है। ऑब्जर्वर्स का मानना है कि शी जिनपिंग शायद अब अपनी भूमिका में बदलाव की तरफ बढ़ रहे है।
शी जिनपिंग क्या सन्यास लेने वाले हैं?
चीन में साल 2027 में कांग्रेस की बैठक होने वाली है, जिसमें नये राष्ट्रपति का चुनाव किया जाता है। लेकिन 2018 में शी जिनपिंग ने देश के संविधान को बदल दिया था, जिसमें कहा गया था कि एक शख्स दो बार से ज्यादा राष्ट्रपति नहीं बन सकता है। जिसके बाद से ही लोगों ने मान लिया था कि शी जिनपिंग आजीवन राष्ट्रपति बने रहना चाहते हैं। वहीं साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की एक रिपोर्ट में चीन के एक विश्लेषक ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर बताया कि "यह नियम शायद इसलिए लाए जा रहे हैं, क्योंकि सत्ता हस्तांतरण का समय आ रहा है।" तो फिर सवाल ये है कि क्या साल 2027 में चीन का राष्ट्रपति बदलने वाला है और क्या इस बैठक से उसी प्रक्रिया की शुरूआत हो चुकी है?
लेकिन चीन के मामलों पर नजर रखने वाले कई और एक्सपर्ट इसे सिर्फ एक प्रशासनिक रणनीति के रूप में देख रहे हैं, जिससे शी जिनपिंग रोजमर्रा के शासन से कुछ हद तक पीछे हट सकें, लेकिन देश का पूरा नियंत्रण उनके ही हाथों में रहे। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया सैन डिएगो के प्रोफेसर विक्टर शी का मानना है कि "ऐसा लगता है कि शी जिनपिंग अब हर छोटे-बड़े मामले में खुद शामिल नहीं रहना चाहते और इसके लिए वे एक ऐसा निगरानी तंत्र तैयार कर रहे हैं, जो यह सुनिश्चित करे कि उनके तय किए गए एजेंडे नीचे तक लागू हों।"
उत्तराधिकारी की खोज या नियंत्रण का नया मॉडल?
चीन की सत्ता का 100 फीसदी कंट्रोल अभी शी जिनपिंग के हाथों में है। फिर भी 'शंघाई गैंग' पूरी तरह से खत्म नहीं हो पाया है। शी जिनपिंग का विरोधी खेमा, जिसमें पूर्व राष्ट्रपति हू जिंताओ भी शामिल हैं, वो अभी भी सक्रिय है। लिहाजा सवाल ये हैं कि क्या शी जिनपिंग की ये कोई नई चाल है, जिसका मकसद 'नियंत्रण का नया मॉडल' लाना है! शी जिनपिंग के भविष्य या चाल को लेकर जारी इस बहस को और हवा तब मिली जब उन्होंने ने इस बार ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में हिस्सा नहीं लिया। यह पहली बार था जब 2012 में सत्ता संभालने के बाद उन्होंने इस स्तर की किसी बहुपक्षीय बैठक से दूरी बनाई हो। उनकी जगह इस बार चीनी प्रधानमंत्री ली कियांग ने सम्मेलन में शिरकत की। इसे सिर्फ प्रतीकात्मक नहीं माना जा सकता, बल्कि यह बताता है कि शी जिनपिंग शायद अब कुछ जिम्मेदारियां सार्वजनिक रूप से बांटने की नीति पर चल रहे हैं।
शी जिनपिंग के इस फैसले पीछे कुछ वजहें हो सकती हैं, जैसे चीन की लगातार धीमी हो रही अर्थव्यवस्था, रियल एस्टेट सेक्टर में संकट, युवाओं में बढ़ती बेरोजगारी, अमेरिका के साथ चल रहा व्यापार युद्ध और कोविड के बाद की लागू की गई कई नीतियों का नाकाम हो जाना। हालांकि शी जिनपिंग ने जिस तरह से शासन को कंट्रोल किया है और उनकी जो शैली रही है, उसे देखते हुए यह कहना जल्दबाजी होगी कि वे वाकई में पीछे हटने की सोच रहे हैं। 2012 में सत्ता में आने के बाद से उन्होंने सत्ता को इतना केंद्रीकृत कर दिया कि उन्हें आज आधुनिक चीन का सबसे शक्तिशाली नेता कहा जाता है। भ्रष्टाचार के खिलाफ उनके अभियानों ने लाखों अधिकारियों को निशाना बनाया है, सैकड़ों नेता जेल में पिस रहे हैं, जिनमें कई सेना प्रमुख और पोलिटब्यूरो के सदस्य भी शामिल रहे। 2016 में उन्हें पार्टी का "कोर लीडर" घोषित किया गया था और यह दर्जा आधुनिक चीन के संस्थापक माओ जेदोंग के बाद किसी को नहीं मिला था। 2022 में उन्होंने तीसरी बार जनरल सेक्रेटरी और 2023 में तीसरी बार राष्ट्रपति पद की शपथ ली, जो उनके पूर्ववर्तियों के दो-दो कार्यकाल की परंपरा को तोड़ता है।
लिहाजा शी जिनपिंग क्या फैसला ले रहे हैं और उनके फैसले का क्या असर होगा, इसका फैसला 2027 में होने वाली अगली पार्टी कांग्रेस की बैठक के बाद ही पता चल पाएगा। लेकिन एक्सपर्ट्स इस बात को लेकर एकमत हैं कि उनके नेतृत्व में चीनी सत्ता की शैली व्यक्तिगत नेतृत्व से संस्था-आधारित नेतृत्व की ओर शिफ्ट होती दिख रही है, लेकिन नियंत्रण अब भी उन्हीं के हाथ में है। यदि यह रणनीति कामयाब होती है तो यह चीन की राजनीतिक स्थिरता को बनाए रख सकती है, लेकिन यदि यह संतुलन बिगड़ता है तो अंदरूनी कलह और असंतोष को भी जन्म दे सकता है।
चीन की सरकारी शिन्हुआ न्यूज ने इस बैठक को लेकर बताया है इस बैठक से इन संस्थानों से प्रमुख राष्ट्रीय फैसलों को लेकर नेतृत्व और कॉर्डिनेशन बढ़ाने की उम्मीद है। लेकिन ऑब्जर्वर्स इस बैठक को इतने सामान्य तरीके से नहीं देख रहे है। कई एक्सपर्ट्स का मानना है कि इस बैठक का मकसद चीन के लिए अगले लीडर खोजने की बहुत लंबी प्रक्रिया की शुरूआत हो सकती है। ऑब्जर्वर्स का मानना है कि शी जिनपिंग शायद अब अपनी भूमिका में बदलाव की तरफ बढ़ रहे है।
शी जिनपिंग क्या सन्यास लेने वाले हैं?
चीन में साल 2027 में कांग्रेस की बैठक होने वाली है, जिसमें नये राष्ट्रपति का चुनाव किया जाता है। लेकिन 2018 में शी जिनपिंग ने देश के संविधान को बदल दिया था, जिसमें कहा गया था कि एक शख्स दो बार से ज्यादा राष्ट्रपति नहीं बन सकता है। जिसके बाद से ही लोगों ने मान लिया था कि शी जिनपिंग आजीवन राष्ट्रपति बने रहना चाहते हैं। वहीं साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की एक रिपोर्ट में चीन के एक विश्लेषक ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर बताया कि "यह नियम शायद इसलिए लाए जा रहे हैं, क्योंकि सत्ता हस्तांतरण का समय आ रहा है।" तो फिर सवाल ये है कि क्या साल 2027 में चीन का राष्ट्रपति बदलने वाला है और क्या इस बैठक से उसी प्रक्रिया की शुरूआत हो चुकी है?
लेकिन चीन के मामलों पर नजर रखने वाले कई और एक्सपर्ट इसे सिर्फ एक प्रशासनिक रणनीति के रूप में देख रहे हैं, जिससे शी जिनपिंग रोजमर्रा के शासन से कुछ हद तक पीछे हट सकें, लेकिन देश का पूरा नियंत्रण उनके ही हाथों में रहे। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया सैन डिएगो के प्रोफेसर विक्टर शी का मानना है कि "ऐसा लगता है कि शी जिनपिंग अब हर छोटे-बड़े मामले में खुद शामिल नहीं रहना चाहते और इसके लिए वे एक ऐसा निगरानी तंत्र तैयार कर रहे हैं, जो यह सुनिश्चित करे कि उनके तय किए गए एजेंडे नीचे तक लागू हों।"
उत्तराधिकारी की खोज या नियंत्रण का नया मॉडल?
चीन की सत्ता का 100 फीसदी कंट्रोल अभी शी जिनपिंग के हाथों में है। फिर भी 'शंघाई गैंग' पूरी तरह से खत्म नहीं हो पाया है। शी जिनपिंग का विरोधी खेमा, जिसमें पूर्व राष्ट्रपति हू जिंताओ भी शामिल हैं, वो अभी भी सक्रिय है। लिहाजा सवाल ये हैं कि क्या शी जिनपिंग की ये कोई नई चाल है, जिसका मकसद 'नियंत्रण का नया मॉडल' लाना है! शी जिनपिंग के भविष्य या चाल को लेकर जारी इस बहस को और हवा तब मिली जब उन्होंने ने इस बार ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में हिस्सा नहीं लिया। यह पहली बार था जब 2012 में सत्ता संभालने के बाद उन्होंने इस स्तर की किसी बहुपक्षीय बैठक से दूरी बनाई हो। उनकी जगह इस बार चीनी प्रधानमंत्री ली कियांग ने सम्मेलन में शिरकत की। इसे सिर्फ प्रतीकात्मक नहीं माना जा सकता, बल्कि यह बताता है कि शी जिनपिंग शायद अब कुछ जिम्मेदारियां सार्वजनिक रूप से बांटने की नीति पर चल रहे हैं।
शी जिनपिंग के इस फैसले पीछे कुछ वजहें हो सकती हैं, जैसे चीन की लगातार धीमी हो रही अर्थव्यवस्था, रियल एस्टेट सेक्टर में संकट, युवाओं में बढ़ती बेरोजगारी, अमेरिका के साथ चल रहा व्यापार युद्ध और कोविड के बाद की लागू की गई कई नीतियों का नाकाम हो जाना। हालांकि शी जिनपिंग ने जिस तरह से शासन को कंट्रोल किया है और उनकी जो शैली रही है, उसे देखते हुए यह कहना जल्दबाजी होगी कि वे वाकई में पीछे हटने की सोच रहे हैं। 2012 में सत्ता में आने के बाद से उन्होंने सत्ता को इतना केंद्रीकृत कर दिया कि उन्हें आज आधुनिक चीन का सबसे शक्तिशाली नेता कहा जाता है। भ्रष्टाचार के खिलाफ उनके अभियानों ने लाखों अधिकारियों को निशाना बनाया है, सैकड़ों नेता जेल में पिस रहे हैं, जिनमें कई सेना प्रमुख और पोलिटब्यूरो के सदस्य भी शामिल रहे। 2016 में उन्हें पार्टी का "कोर लीडर" घोषित किया गया था और यह दर्जा आधुनिक चीन के संस्थापक माओ जेदोंग के बाद किसी को नहीं मिला था। 2022 में उन्होंने तीसरी बार जनरल सेक्रेटरी और 2023 में तीसरी बार राष्ट्रपति पद की शपथ ली, जो उनके पूर्ववर्तियों के दो-दो कार्यकाल की परंपरा को तोड़ता है।
लिहाजा शी जिनपिंग क्या फैसला ले रहे हैं और उनके फैसले का क्या असर होगा, इसका फैसला 2027 में होने वाली अगली पार्टी कांग्रेस की बैठक के बाद ही पता चल पाएगा। लेकिन एक्सपर्ट्स इस बात को लेकर एकमत हैं कि उनके नेतृत्व में चीनी सत्ता की शैली व्यक्तिगत नेतृत्व से संस्था-आधारित नेतृत्व की ओर शिफ्ट होती दिख रही है, लेकिन नियंत्रण अब भी उन्हीं के हाथ में है। यदि यह रणनीति कामयाब होती है तो यह चीन की राजनीतिक स्थिरता को बनाए रख सकती है, लेकिन यदि यह संतुलन बिगड़ता है तो अंदरूनी कलह और असंतोष को भी जन्म दे सकता है।
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