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मृतक के ब्लड ग्रुप वाले खून से सना हथियार बरामद होना हत्या का दोषी ठहराने के लिए काफी नहीं: सुप्रीम कोर्ट

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि सिर्फ खून से सना हथियार मिलना और उस पर विक्टिम के ब्लड ग्रुप का खून होना, मर्डर के केस में दोषी ठहराने के लिए काफी नहीं है। इसका मतलब है कि अगर किसी पर हत्या का आरोप है, तो सिर्फ इसलिए उसे दोषी नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि उसके पास से एक ऐसा हथियार मिला है, जिस पर मृतक के ब्लड ग्रुप का खून लगा है। ऐसा कहते हुए सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस प्रसन्ना बी वराले की बेंच ने राजस्थान सरकार की एक अपील को खारिज कर दिया।



हत्या के केस में सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

लाइव लॉ की एक रिपोर्ट के अनुसार राजस्थान सरकार ने मर्डर के एक आरोपी को बरी करने के फैसले को चुनौती दी थी। कोर्ट ने कहा कि सिर्फ इतना सबूत काफी नहीं है कि हथियार पर विक्टिम के ब्लड ग्रुप का खून है। कोर्ट ने हाई कोर्ट के 15 मई, 2015 के फैसले को सही ठहराया। हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलट दिया था। ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को दोषी ठहराया था और उसे उम्रकैद की सजा सुनाई थी। कोर्ट ने कहा, 'हमारी राय में, अगर एफएसएल (Forensic Science Laboratory) रिपोर्ट को भी ध्यान में रखा जाए, तो भी सिर्फ इतना ही पता चलता है कि आरोपी के पास से बरामद हथियार पर वही ब्लड ग्रुप (B +ve) है, जो विक्टिम का था। इससे ज्यादा कुछ नहीं पता चलता...।'



हथियार पर मिला था मृतक के ब्लड ग्रुप का खून

इस मामले में ट्रायल कोर्ट ने रेस्पोंडेंट को 10 दिसंबर, 2008 को आईपीसी (Indian Penal Code) की धारा 302 के तहत दोषी ठहराया था। उसे उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी और उस पर जुर्माना भी लगाया गया था। यह मामला छोटू लाल के मर्डर से जुड़ा है। मर्डर 1 और 2 मार्च, 2007 की रात को हुआ था। एफआईआर (First Information Report) पहले अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज की गई थी। बाद में रेस्पोंडेंट को शक और परिस्थितिजन्य सबूतों के आधार पर इस केस में शामिल किया गया। अभियोजन पक्ष ने यह तर्क दिया कि रेस्पोंडेंट की बुरी नजर मृतक की पत्नी पर थी। उन्होंने एक हथियार भी बरामद किया और FSL रिपोर्ट में पाया गया कि हथियार पर लगा खून मृतक के ब्लड ग्रुप (B+ve) से मिलता है।



सुप्रीम कोर्ट ने आरोप खारिज कर किया बरी

इससे पहले अपील में राजस्थान हाई कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष उन सभी परिस्थितियों को साबित करने में विफल रहा है, जो आरोपी को दोषी ठहराने के लिए जरूरी हैं। यह मामला पूरी तरह से परिस्थितिजन्य सबूतों पर आधारित था। इसलिए हाई कोर्ट ने रेस्पोंडेंट को बरी कर दिया था। इसके बाद अभियोजन पक्ष सुप्रीम कोर्ट में गया। सुप्रीम कोर्ट हाई कोर्ट के फैसले से सहमत था। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष द्वारा बताए गए परिस्थितिजन्य सबूत, जैसे कि मकसद और खून से सना हथियार मिलना, आरोपी को दोषी साबित करने के लिए काफी नहीं हैं। कोर्ट ने कहा कि वह तभी हस्तक्षेप कर सकता है, जब सबूत सिर्फ आरोपी की ओर इशारा करते हों और उसकी बेगुनाही की कोई गुंजाइश न हो। कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि अभियोजन पक्ष ने ऐसा कोई ठोस सबूत पेश नहीं किया है और हाई कोर्ट का फैसला ही सही है। अदालत ने कहा,' इस मामले में, हम पूरी तरह से संतुष्ट हैं कि अभियोजन पक्ष आरोप साबित करने के लिए ठोस सबूत पेश करने में विफल रहा। हाई कोर्ट का फैसला ही सही है, यानी आरोपी निर्दोष है।'सुप्रीम कोर्ट ने अपील को खारिज कर दिया। इसका मतलब है कि आरोपी अब पूरी तरह से बरी हो गया है।



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