नई दिल्ली: ईरान-इजरायल के बीच 12 दिनों तक चले युद्ध ने भारत के लिए कूटनीतिक, सामरिक और आर्थिक तौर पर कई सबक दिए हैं। इनमें से ज्यादातर सकारात्मक हैं, इसलिए देश की उम्मीदें चौतरफा बढ़ गई हैं। वहीं, पहलगाम में आतंकी हमले की साजिश के मास्टरमाइंड रहे पाकिस्तान के सेना प्रमुख असीम मुनीर, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ लंच करके जो गदगद नजर आ रहे थे, उन्हें भविष्य में भारतीय सशस्त्र सेना से हमेशा डर कर रहने की सबक भी मिल चुकी है। क्योंकि, ईरान-इजरायल के बीच 12 दिनों तक जिस तरीके से युद्ध लड़ा गया है और उसमें ट्रंप की वजह से अमेरिका की जो किरकिरी हुई है, उससे आने वाले दिनों में जियोपॉलिटिक्स में बहुत बड़े बदलाव की बीज पड़ चुकी है, जिसमें भारत और चीन के लिए संभावनाओं की भरमार दिख रही हैं।
अमेरिका की ऐसी फजीहत कभी नहीं हुई
अमेरिका के ईरान पर किए गए हमले को लेकर न्यूज एजेंसी सीएनएन और न्यूयॉर्क टाइम्स ने एक रिपोर्ट छापी है। इसके अनुसार, अमेरिका ने ईरान के तीन परमाणु केंद्रों फोर्डो, इस्फहान और नतांज में जो हमला किया था, वह पूरी तरह से सफल नहीं रहा। सीएनएन की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिकी सैन्य हमलों के बाद भी ईरान का परमाणु कार्यक्रम पूरी तरह से नष्ट नहीं हुआ है। यह जानकारी अमेरिका के खुफिया विभाग के एक शुरुआती आकलन में सामने आई है। हमले का आकलन कर रहे दो लोगों ने बताया कि ईरान के यूरेनियम के भंडार को नष्ट नहीं किया जा सका। एक व्यक्ति ने कहा कि सेंट्रीफ्यूज काफी हद तक 'कायम' हैं। एक अन्य सूत्र ने बताया कि खुफिया जानकारी के अनुसार, अमेरिकी हमलों से पहले ही यूरेनियम को ईरान ने अपने स्थान से हटाकर सुरक्षित जगह पर पहुंचा दिया था। हालांकि, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अमेरिकी मीडिया के इन दावों को 'फेक'बता रहे हैं। लेकिन, इतना तो तय है कि भारत-पाकिस्तान के बीच ऑपरेशन सिंदूर के दौरान सीजफायर का एकतरफा दावा करने वाले ट्रंप की अंतरराष्ट्रीय छवि इस घटना से और भी खराब हुई है और भारत का स्टैंड अब और ज्यादा मजबूती से स्थापित हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कनाडा से लौटते वक्त वाशिंगटन में उतरने के ट्रंप के अनुरोध को सिरे से खारिज करके पहले ही संदेश दे चुके हैं कि ट्रंप भारत के द्विपक्षीय मामलों में 'चौधरी' बनने की उम्मीद छोड़ दें।
परमाणु हमले की 'धमकी' अब बेअसर!
भारत ने ऑपरेशन सिंदूर को अंजाम देकर ही अपना इरादा जाहिर कर दिया था कि वह परमाणु हमले के डर से आगे निकल चुका है। ईरान-इजरायल युद्ध में अमेरिका ने जिस नाटकीय अंदाज में एंट्री की थी, उसके पीछे भी परमाणु का खतरा ही दिखाया गया था। लेकिन, अब अमेरिकी मीडिया ही बता रही है कि ट्रंप परमाणु हथियार की संभावनाओं को सच में मिटाने से ज्यादा अपनी छवि चमकाने में लगे हुए हैं। मतलब, मानवता के लिए इतने खौफनाक हथियार की गंभीरता को 'नोबेल पुरस्कार'के लोभ में मटियामेट कर दिया गया है। कुछ रिपोर्ट तो यह कह रही है कि अमेरिकी हमले के बाद ईरान में भूकंप के कई हल्के झटके महसूस किए गए हैं और आशंका है कि उसने किसी गुप्त स्थान पर परमाणु परीक्षण को अंजाम दे भी दिया है। इसी तरह से भारत को हमेशा परमाणु हमले की धमकी देने वाला पाकिस्तान तब भी अमेरिका का मुंह ही ताकता रह गया, जब भारतीय वायुसेना की मिसाइलों ने उसके परमाणु ठिकानों से सटे नूर खान एयरबेस को तबाह कर दिया। तब रेडिएशन लीक की खबरें भी उड़ीं थीं, लेकिन वह उसी तरह से गायब भी हो गईं। इसी तरह से रूस और यूक्रेन में तीन साल से ज्यादा समय से युद्ध हो रहा है। लेकिन, अभी तक परमाणु हमले जैसी कोई बात सामने नहीं आई है। मतलब, दुनिया के कई देशों के पास परमाणु हथियार हैं तो जरूर, लेकिन अब युद्ध सिर्फ और सिर्फ अत्याधुनिक तकनीक और आर्थिक ताकत के दम पर ही लड़ा जा रहा है और इसमें भारत के मुकाबले पाकिस्तान कहीं भी खड़ा नहीं है।
अब हर युद्ध में तकनीक ही मार रही बाजी
यूक्रेन-रूस, इजरायल-हमास, ऑपरेशन सिंदूर से लेकर ईरान-इजरायल-अमेरिका के युद्ध में हाथ उसी के ऊपर रहे हैं, जिसके पास बेहतर टेक्नोलॉजी और पैसा है। भारत पहले यह सब देखकर अनुभव जुटा रहा था और उसे ऑपरेशन सिंदूर में इसका भरपूर फायदा भी मिला। ड्रोन आज युद्ध में सबसे कामयाब हथियार बन चुके हैं और भारत को इस सेक्टर में पहले से ही महारत हासिल है और भविष्य में इसके के लिए संभावनाओं के भी द्वार खुलते जा रहे हैं। अपने ड्रोन के माध्यम से यूक्रेन ने जिस तरह से एकसाथ रूस के 40 फाइटर जेट के परखच्चे उड़ा दिए, उससे पूरी दुनिया आज भी सन्न है। रूस आज भी जवाबी कार्रवाई की तैयारियां ही कर रहा है। भारतीय मिसाइलों और ड्रोन ने जिस तरह से पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों और सैन्य ठिकानों को नेस्तनाबूद किया, उससे उबरने में उसे वर्षों लग जाएंगे। लेकिन, पाकिस्तान अपने दम पर ऐसी तकनीक विकसित करने की सोच भी नहीं सकता, जबकि भारतीय ड्रोन कंपनियों को विदेशों से ऑर्डर मिल रहे हैं। मतलब, अत्याधुनिक युद्ध में इस्तेमाल हो रही टेक्नोलॉजी ने भारत को दुश्मनों के खिलाफ जहां ताकतवर बनाया है, वहीं विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ाने में बहुत बड़ा सहायक भी बन रहा है। आने वाले समय में भारत टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में और आगे बढ़ने में सक्षम है और उस दिशा में काम शुरू भी हो चुका है।
भारत के लिए आज भी चीन सबसे बड़ा खतरा
ऐसे में भारत के लिए आज भी सबसे बड़ा खतरा चीन ही है। लेकिन, इसमें भी कई चीजें देश के लिए सकारात्मक हैं। 1962 के बाद चीन भारत के साथ कभी पूर्ण युद्ध के लिए तैयार नहीं दिखा है। उसकी नजर ज्यादातर अमेरिकी दबदबे को मिटाने पर लगी रही है। भारत उसका समृद्ध और शक्तिशाली पड़ोसी है, इसलिए उससे आशंकित रहना उसकी सामरिक रणनीति की मजबूरी भी है। इसलिए मौजूदा हालातों में भारत और चीन के बीच उस तरह के किसी युद्ध की आशंका नहीं दिखती है, जो पिछले कुछ वर्षों से कई देशों के बीच लड़े जा रहे हैं। ड्रैगन अक्सर हमसे वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर भिड़ता रहता है, क्योंकि, वहां अंतरराष्ट्रीय सीमाएं तय नहीं हैं। एक तथ्य यह भी है कि चीन को भी पता है कि भारत के साथ उसका कोई बड़ा युद्ध छेड़ना, अभी के जियोपॉलिटिक्स में सिर्फ दो देशों के बीच की लड़ाई नहीं रहने वाली। यह सही मायने में तीसरे विश्व युद्ध की आहट हो सकती है, जिसमें चीन के पास बड़ी ताकत तो होगी, लेकिन भारत भी खाली हाथ नहीं होगा।
"लेख में बताए गए भू-राजनीतिक बदलावों और भारत की बढ़ती सैन्य-तकनीकी क्षमताओं को देखते हुए, क्या आपको लगता है कि भारत आने वाले समय में अपनी सुरक्षा और वैश्विक भूमिका को और मजबूत कर पाएगा? अपने विचार कमेंट बॉक्स में हिंदी या अंग्रेजी में जरूर साझा करें! लॉग इन करें और अपनी राय दें!
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अमेरिका की ऐसी फजीहत कभी नहीं हुई
अमेरिका के ईरान पर किए गए हमले को लेकर न्यूज एजेंसी सीएनएन और न्यूयॉर्क टाइम्स ने एक रिपोर्ट छापी है। इसके अनुसार, अमेरिका ने ईरान के तीन परमाणु केंद्रों फोर्डो, इस्फहान और नतांज में जो हमला किया था, वह पूरी तरह से सफल नहीं रहा। सीएनएन की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिकी सैन्य हमलों के बाद भी ईरान का परमाणु कार्यक्रम पूरी तरह से नष्ट नहीं हुआ है। यह जानकारी अमेरिका के खुफिया विभाग के एक शुरुआती आकलन में सामने आई है। हमले का आकलन कर रहे दो लोगों ने बताया कि ईरान के यूरेनियम के भंडार को नष्ट नहीं किया जा सका। एक व्यक्ति ने कहा कि सेंट्रीफ्यूज काफी हद तक 'कायम' हैं। एक अन्य सूत्र ने बताया कि खुफिया जानकारी के अनुसार, अमेरिकी हमलों से पहले ही यूरेनियम को ईरान ने अपने स्थान से हटाकर सुरक्षित जगह पर पहुंचा दिया था। हालांकि, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अमेरिकी मीडिया के इन दावों को 'फेक'बता रहे हैं। लेकिन, इतना तो तय है कि भारत-पाकिस्तान के बीच ऑपरेशन सिंदूर के दौरान सीजफायर का एकतरफा दावा करने वाले ट्रंप की अंतरराष्ट्रीय छवि इस घटना से और भी खराब हुई है और भारत का स्टैंड अब और ज्यादा मजबूती से स्थापित हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कनाडा से लौटते वक्त वाशिंगटन में उतरने के ट्रंप के अनुरोध को सिरे से खारिज करके पहले ही संदेश दे चुके हैं कि ट्रंप भारत के द्विपक्षीय मामलों में 'चौधरी' बनने की उम्मीद छोड़ दें।

परमाणु हमले की 'धमकी' अब बेअसर!
भारत ने ऑपरेशन सिंदूर को अंजाम देकर ही अपना इरादा जाहिर कर दिया था कि वह परमाणु हमले के डर से आगे निकल चुका है। ईरान-इजरायल युद्ध में अमेरिका ने जिस नाटकीय अंदाज में एंट्री की थी, उसके पीछे भी परमाणु का खतरा ही दिखाया गया था। लेकिन, अब अमेरिकी मीडिया ही बता रही है कि ट्रंप परमाणु हथियार की संभावनाओं को सच में मिटाने से ज्यादा अपनी छवि चमकाने में लगे हुए हैं। मतलब, मानवता के लिए इतने खौफनाक हथियार की गंभीरता को 'नोबेल पुरस्कार'के लोभ में मटियामेट कर दिया गया है। कुछ रिपोर्ट तो यह कह रही है कि अमेरिकी हमले के बाद ईरान में भूकंप के कई हल्के झटके महसूस किए गए हैं और आशंका है कि उसने किसी गुप्त स्थान पर परमाणु परीक्षण को अंजाम दे भी दिया है। इसी तरह से भारत को हमेशा परमाणु हमले की धमकी देने वाला पाकिस्तान तब भी अमेरिका का मुंह ही ताकता रह गया, जब भारतीय वायुसेना की मिसाइलों ने उसके परमाणु ठिकानों से सटे नूर खान एयरबेस को तबाह कर दिया। तब रेडिएशन लीक की खबरें भी उड़ीं थीं, लेकिन वह उसी तरह से गायब भी हो गईं। इसी तरह से रूस और यूक्रेन में तीन साल से ज्यादा समय से युद्ध हो रहा है। लेकिन, अभी तक परमाणु हमले जैसी कोई बात सामने नहीं आई है। मतलब, दुनिया के कई देशों के पास परमाणु हथियार हैं तो जरूर, लेकिन अब युद्ध सिर्फ और सिर्फ अत्याधुनिक तकनीक और आर्थिक ताकत के दम पर ही लड़ा जा रहा है और इसमें भारत के मुकाबले पाकिस्तान कहीं भी खड़ा नहीं है।

अब हर युद्ध में तकनीक ही मार रही बाजी
यूक्रेन-रूस, इजरायल-हमास, ऑपरेशन सिंदूर से लेकर ईरान-इजरायल-अमेरिका के युद्ध में हाथ उसी के ऊपर रहे हैं, जिसके पास बेहतर टेक्नोलॉजी और पैसा है। भारत पहले यह सब देखकर अनुभव जुटा रहा था और उसे ऑपरेशन सिंदूर में इसका भरपूर फायदा भी मिला। ड्रोन आज युद्ध में सबसे कामयाब हथियार बन चुके हैं और भारत को इस सेक्टर में पहले से ही महारत हासिल है और भविष्य में इसके के लिए संभावनाओं के भी द्वार खुलते जा रहे हैं। अपने ड्रोन के माध्यम से यूक्रेन ने जिस तरह से एकसाथ रूस के 40 फाइटर जेट के परखच्चे उड़ा दिए, उससे पूरी दुनिया आज भी सन्न है। रूस आज भी जवाबी कार्रवाई की तैयारियां ही कर रहा है। भारतीय मिसाइलों और ड्रोन ने जिस तरह से पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों और सैन्य ठिकानों को नेस्तनाबूद किया, उससे उबरने में उसे वर्षों लग जाएंगे। लेकिन, पाकिस्तान अपने दम पर ऐसी तकनीक विकसित करने की सोच भी नहीं सकता, जबकि भारतीय ड्रोन कंपनियों को विदेशों से ऑर्डर मिल रहे हैं। मतलब, अत्याधुनिक युद्ध में इस्तेमाल हो रही टेक्नोलॉजी ने भारत को दुश्मनों के खिलाफ जहां ताकतवर बनाया है, वहीं विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ाने में बहुत बड़ा सहायक भी बन रहा है। आने वाले समय में भारत टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में और आगे बढ़ने में सक्षम है और उस दिशा में काम शुरू भी हो चुका है।

भारत के लिए आज भी चीन सबसे बड़ा खतरा
ऐसे में भारत के लिए आज भी सबसे बड़ा खतरा चीन ही है। लेकिन, इसमें भी कई चीजें देश के लिए सकारात्मक हैं। 1962 के बाद चीन भारत के साथ कभी पूर्ण युद्ध के लिए तैयार नहीं दिखा है। उसकी नजर ज्यादातर अमेरिकी दबदबे को मिटाने पर लगी रही है। भारत उसका समृद्ध और शक्तिशाली पड़ोसी है, इसलिए उससे आशंकित रहना उसकी सामरिक रणनीति की मजबूरी भी है। इसलिए मौजूदा हालातों में भारत और चीन के बीच उस तरह के किसी युद्ध की आशंका नहीं दिखती है, जो पिछले कुछ वर्षों से कई देशों के बीच लड़े जा रहे हैं। ड्रैगन अक्सर हमसे वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर भिड़ता रहता है, क्योंकि, वहां अंतरराष्ट्रीय सीमाएं तय नहीं हैं। एक तथ्य यह भी है कि चीन को भी पता है कि भारत के साथ उसका कोई बड़ा युद्ध छेड़ना, अभी के जियोपॉलिटिक्स में सिर्फ दो देशों के बीच की लड़ाई नहीं रहने वाली। यह सही मायने में तीसरे विश्व युद्ध की आहट हो सकती है, जिसमें चीन के पास बड़ी ताकत तो होगी, लेकिन भारत भी खाली हाथ नहीं होगा।
"लेख में बताए गए भू-राजनीतिक बदलावों और भारत की बढ़ती सैन्य-तकनीकी क्षमताओं को देखते हुए, क्या आपको लगता है कि भारत आने वाले समय में अपनी सुरक्षा और वैश्विक भूमिका को और मजबूत कर पाएगा? अपने विचार कमेंट बॉक्स में हिंदी या अंग्रेजी में जरूर साझा करें! लॉग इन करें और अपनी राय दें!
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