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भाई दूज पर इससे बेहतरीन गिफ्ट कोई नहीं, 60 साल बाद मिला 91 साल का भाई...रो पड़े सब, VIDEO

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नई दिल्ली/गुवाहाटी : दिवाली के बाद भाई दूज के अवसर पर घरवालों को एक बेहतरीन तोहफा मिला है। एक बूढ़े हो चुके भाई को उसका 91 साल का बड़ा भाई मिला है। 81 साल के छोटे भाई को कभी उम्मीद भी नहीं थी कि उसका यह बड़ा भाई इस जीवन में मिल पाएगा। बात कर रहे हैं नगा लीडर थुइंगलेंग मुइवा की, जो बरसों तक भूमिगत रहने के बाद पहली बार 22 अक्टूबर, 2025 को मणिपुर के उखरुल जिले में अपने पैतृक गांव सोमदल पहुंचे। हजारों की भीड़ ने उनकी घरवापसी पर जोरदार स्वागत किया। वह 1964 में अपने गांव से नगा आंदोलन के लिए निकले और ज्यादातर समय अंडरग्राउंड ही रहे। बीच में 1973 में वह कुछ देर के लिए गांव के बाहर बने एक चर्च में आए थे, मगर वह रुके नहीं थे। ऐसे में उनका गांव में आना करीब 61 साल बाद ही हुआ है।


1950 के दशक में शुरू हुआ था नगा आंदोलन

नगा विद्रोह 1950 के दशक में स्वतंत्रता संग्राम के रूप में शुरू हुआ था। 1997 में भारत और मुइवा के समूह NSCN (I-M) नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (इसाक-मुइवा) के बीच युद्धविराम के बाद से हिंसा कम हुई है, लेकिन अलग झंडे और संविधान की मांग को लेकर बातचीत अभी भी रुकी हुई है। मुइवा वर्तमान में भारत सरकार के साथ शांति वार्ता का नेतृत्व कर रहे हैं। वह नगा लोगों के लिए अधिक राजनीतिक अधिकारों की मांग कर रहे हैं, जो पूर्वोत्तर के मूल समूह हैं।

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मुइवा ने किसे कहा था देशद्रोही

थुइंगलेंग मुइवा का जन्म 3 मार्च, 1934 में हुआ था। वह एक नगा राष्ट्रवादी राजनीतिज्ञ और नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (आईएम) के महासचिव हैं। मुइवा नगा नेशनल काउंसिल (एनएनसी) में शामिल हो गए, जो नगालैंड को भारत से अलग करने के लिए अभियान चलाने वाला एक हथियारबंद समूह था। बाद में वे एनएनसी के महासचिव बने। जब एनएनसी नेताओं के एक समूह ने भारत सरकार के साथ 1975 के शिलांग समझौते पर हस्ताक्षर किए , तो मुविया और कुछ अन्य लोगों ने उन्हें देशद्रोही करार दिया।


1980 में मुइवा और उनके साथियों ने NSCN बनाया
1980 में इसाक चिशी स्वू , एसएस खापलांग और मुइवा के नेतृत्व वाला एक गुट एनएनसी से अलग होकर नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालिम (एनएससीएन) का गठन किया। एनएससीएन का गठन शिलांग समझौते से असंतोष और एनएनसी द्वारा छोड़ी गई अलगाववादी गतिविधियों को जारी रखने के परिणामस्वरूप हुआ था। बाद में प्रमुख मतभेदों के कारण यह समूह स्वू और मुइवा के नेतृत्व वाले एनएससीएन (आईएम) और खापलांग के नेतृत्व वाले एनएससीएन (के) में बंट गया।
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मुइवा का गांव पूरी दुनिया में छाया
वेबसाइट EastMojo के अनुसार, मणिपुर के उखरुल जिले का सोमदल गांव पूरी दुनिया में चर्चा में आ गया है। सोमदल गांव देखने में भले ही एक आम नगा गांव जैसा लगता हो, लेकिन इसका नाम इतिहास में दर्ज है। यह मुइवा का पैतृक गांव है, जिन्होंने दशकों से नगा आंदोलन का नेतृत्व किया है। हालांकि, वह पिछले छह दशकों से अपने गांव नहीं लौट पाए हैं।

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परिवार में पत्नी और छोटा भाई ही जीवित
वेबसाइट ईस्टमोजो के मुताबिक, मुइवा के परिवार में उनकी पत्नी और एक छोटा भाई ही जीवित है। 91 वर्षीय मुइवा के छोटे भाई का नाम असुई मुइवा है, जो अभी 81 साल के हैं। उन्होंने याद करते हुए बताया कि उनके चारों भाई और एक बहन किसी भी सामान्य परिवार की तरह एक साथ बड़े हुए। भाई दूज के मौके पर एक भाई गांव लौट आया है। थुइंगलेंग मुइवा की घर वापसी की खुशी में छोटे भाई असुई मुइवा की आंखों से आंसू निकल पड़े। वहां मौजूद हर किसी के आंखों में आंसू थे।
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पूरे गांव के सबसे बड़े मुखिया हैं मुइवा
गांव के स्थानीय तंगखुल लोग मुइवा को प्यार से 'अवखरार' कहकर पुकारते हैं। तंगखुल बोली में, परिवार के सबसे बड़े सदस्य को अवखरार कहा जाता है। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद मुइवा सोमदल लौट आए। उन्होंने जीवन बदल देने वाला फैसला लेने से पहले नगा राष्ट्रीय आंदोलन में शामिल होने के लिए, कई दिन प्रार्थना और चिंतन में बिताए। रुइवा कांपती आवाज में कहते हैं-जाने से पहले उन्होंने मुझसे कहा था-तुम हमारे तांगखुल समुदाय का ख्याल रखना और मैं नगा राष्ट्र का ख्याल रखूंगा।' 1964 में नगा राष्ट्रीय परिषद में शामिल होने के लिए घर छोड़ने से पहले ये उनके आखिरी शब्द थे।
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मुइवा पैदाइशी नेतृत्वकर्ता है, उसके जैसा कोई नहीं
e-pao.net पर छपी एक स्टोरी में मुइवा के बचपन के दोस्त और पेटीग्रू कॉलेज के प्रिंसिपल रह चुके 87 साल के खानोत रूइवा के मुताबिक, अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद, मुइवा ने उखरुल छोड़ दिया और शिलांग के सेंट एंथोनी कॉलेज से अर्थशास्त्र में ऑनर्स के साथ स्नातक की उपाधि प्राप्त की। बाद में, उन्होंने कॉटन कॉलेज, गुवाहाटी, असम से राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की, जो उन दिनों मणिपुर के सुदूर पहाड़ी इलाकों के किसी लड़के के लिए एक दुर्लभ उपलब्धि थी। वह कहते हैं कि मुइवा की जन्म ही नेतृत्व करने के लिए हुआ है।

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