मेरठ: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के अकबरपुर में अवैध बस्ती पर पिछले साल ध्वस्तीकरण की कार्रवाई हुई थी। करीब 1200 घरों पर बुलडोजर कार्रवाई हुई थी। लखनऊ के बाद अब मेरठ की सेंट्रल मार्केट में बने कॉम्प्लेक्स पर बुलडोजर कार्रवाई हुई है। यहां 22 दुकानों को तोड़ा जा रहा है। जिन लोगों की दुकानें टूट रही हैं, उनकी आंखों से आंसू नहीं रुक रहे हैं। लोग सिर्फ एक ही बात बार-बार कह रहे हैं कि अगर कॉम्प्लेक्स अवैध था, तो बिजली, पानी सप्लाई और अन्य टैक्स क्यों लिया जा रहा था? सरकारों को यह सब नहीं मालूम था क्या? लोगों ने अपने जीवनभर की जमा पूंजी लगाकार दुकान खरीदी की व्यापार करेंगे और बच्चों के लिए अच्छा आशियाना और उनके सपनों को पूरा करेंगे, लेकिन बुलडोजर कार्रवाई ने सब पलभर में खत्म कर दिया।
बुलडोजर कार्रवाई के बीच सवाल उठ रहे हैं कि क्या सिस्टम नेताओं और अधिकारियों के लिए नहीं है, जिनके इशारों पर यह कॉम्प्लेक्स खड़ा हुआ, उन पर क्या कार्रवाई हुई? यही हाल लखनऊ के अकबरपुर में भी रहा। मकान बनते रहे। एलडीए से लेकर नगर निगम तक सब अपनी जेबें भरते रहें। बिजली कनेक्शन दिए गए। पानी की सप्लाई दी गई। चुनाव के समय नेता यहां रहने वाले लोगों को सपने दिखाकर उनका वोट लेते रहे, लेकिन एक झटके में सब खत्म जीवनभर की कमाई से बनाए मकान ध्वस्त कर दिए गए। अब मेरठ के सेंट्रल मार्केट में स्थित कॉम्प्लेक्स में वैसा ही खेल खेला गया। मेरठ नगर निगम से लेकर मेरठ विकास प्राधिकरण और नेताओं से लेकर अधिकारी तक सब अपना फायदा देखते रहे। सबकी जेबें गर्म होती रहीं।
1990 में पहला नोटिस दिया गया था। अब सवाल उठता है कि अगर 1990 में पहला नोटिस दिया गया तो अफसर क्या कर रहे थे और नेता, जो लोगों को लुभाकर वोट मांगते हैं, वो क्या सवाल नहीं उठा पाए कि ये क्या हो रहा है, अभी तक कार्रवाई क्यों नहीं हुई? उसी समय अगर कार्रवाई हुई होती तो इतने सालों तक दुकानों के खरीदने और बेचने का सिस्टम नहीं चलता, वो सब बंद हो गया होता, लेकिन अगर कार्रवाई हो जाती, तो मेरठ नगर निगम और मेरठ विकास प्राधिकरण की कमाई बंद हो जाती। इन दुकानों से आने वाला टैक्स बंद हो जाता। करीब 35 साल तक अफसर और सरकारें सोती रहीं। अचानक से एक आदमी की शिकायत पर सरकार और अधिकारियों की आंखें खुलती हैं और उनको पता चलता है कि ये तो अवैध निर्माण है, इस पर तो बुलडोजर कार्रवाई होनी चाहिए और 25 अक्टूबर 2025 मासूम व्यापारियों के रोजगार को खत्म कर दिया जाता है।
एक दुकानदार ने कहा कि उन्होंने एक साल पहले दुकान ली थी। अब बताइए उसने दुकान ली थी तो बकायदा स्टांप ड्यूटी से लेकर अन्य सारे टैक्स के पैसे दिए होंगे, तब यह सिस्टम कहां था, उस दुकानदार को नहीं बता पाया कि यह दुकानें अवैध हैं और कुछ दिनों में टूटने वाली हैं, लेकिन उनको क्या उनकी जेब में जो पैसे जा रहे थे, उन्होंने आंखें मूंदीं और सब काम कर दिया। सवाल उठता है कि जिन दुकानों को तोड़ा गया क्या उन दुकानों से हुई कमाई को सरकार और मेरठ प्रशासन दुकानदारों को वापस करेगा, क्योंकि देखा जाए तो वो भी अवैध है।
35 साल में कितनी सरकारें बदल गईं, लेकिन कार्रवाई नहीं हुई। माना सरकार ने अवैध निर्माण को ध्वस्त करके बहुत अच्छा काम किया, लेकिन क्या उन अफसरों पर भी कार्रवाई होगी, जो इसके लिए दोषी हैं या सिर्फ उनको बचाया जाएगा? दोषी तो सरकार भी इसके लिए। ये 22 दुकानें नहीं टूटी, बल्कि व्यापार करने वालों की उम्मीद टूटी हैं। इन 22 दुकानों पर काम करने वालों की उम्मीदें टूटी हैं। न जाने कितने परिवार का रोजगार छीना गया है। सवाल तो सरकार से लेकर न्यायपालिका तक से होना चाहिए, क्या इतने दिनों तक सब वैध था, फिर ऐसा क्या हुआ कि अवैध हो गया? आम आदमी पिस गया और नेता-अफसर सब बच गए।
बुलडोजर कार्रवाई के बीच सवाल उठ रहे हैं कि क्या सिस्टम नेताओं और अधिकारियों के लिए नहीं है, जिनके इशारों पर यह कॉम्प्लेक्स खड़ा हुआ, उन पर क्या कार्रवाई हुई? यही हाल लखनऊ के अकबरपुर में भी रहा। मकान बनते रहे। एलडीए से लेकर नगर निगम तक सब अपनी जेबें भरते रहें। बिजली कनेक्शन दिए गए। पानी की सप्लाई दी गई। चुनाव के समय नेता यहां रहने वाले लोगों को सपने दिखाकर उनका वोट लेते रहे, लेकिन एक झटके में सब खत्म जीवनभर की कमाई से बनाए मकान ध्वस्त कर दिए गए। अब मेरठ के सेंट्रल मार्केट में स्थित कॉम्प्लेक्स में वैसा ही खेल खेला गया। मेरठ नगर निगम से लेकर मेरठ विकास प्राधिकरण और नेताओं से लेकर अधिकारी तक सब अपना फायदा देखते रहे। सबकी जेबें गर्म होती रहीं।
1990 में पहला नोटिस दिया गया था। अब सवाल उठता है कि अगर 1990 में पहला नोटिस दिया गया तो अफसर क्या कर रहे थे और नेता, जो लोगों को लुभाकर वोट मांगते हैं, वो क्या सवाल नहीं उठा पाए कि ये क्या हो रहा है, अभी तक कार्रवाई क्यों नहीं हुई? उसी समय अगर कार्रवाई हुई होती तो इतने सालों तक दुकानों के खरीदने और बेचने का सिस्टम नहीं चलता, वो सब बंद हो गया होता, लेकिन अगर कार्रवाई हो जाती, तो मेरठ नगर निगम और मेरठ विकास प्राधिकरण की कमाई बंद हो जाती। इन दुकानों से आने वाला टैक्स बंद हो जाता। करीब 35 साल तक अफसर और सरकारें सोती रहीं। अचानक से एक आदमी की शिकायत पर सरकार और अधिकारियों की आंखें खुलती हैं और उनको पता चलता है कि ये तो अवैध निर्माण है, इस पर तो बुलडोजर कार्रवाई होनी चाहिए और 25 अक्टूबर 2025 मासूम व्यापारियों के रोजगार को खत्म कर दिया जाता है।
एक दुकानदार ने कहा कि उन्होंने एक साल पहले दुकान ली थी। अब बताइए उसने दुकान ली थी तो बकायदा स्टांप ड्यूटी से लेकर अन्य सारे टैक्स के पैसे दिए होंगे, तब यह सिस्टम कहां था, उस दुकानदार को नहीं बता पाया कि यह दुकानें अवैध हैं और कुछ दिनों में टूटने वाली हैं, लेकिन उनको क्या उनकी जेब में जो पैसे जा रहे थे, उन्होंने आंखें मूंदीं और सब काम कर दिया। सवाल उठता है कि जिन दुकानों को तोड़ा गया क्या उन दुकानों से हुई कमाई को सरकार और मेरठ प्रशासन दुकानदारों को वापस करेगा, क्योंकि देखा जाए तो वो भी अवैध है।
35 साल में कितनी सरकारें बदल गईं, लेकिन कार्रवाई नहीं हुई। माना सरकार ने अवैध निर्माण को ध्वस्त करके बहुत अच्छा काम किया, लेकिन क्या उन अफसरों पर भी कार्रवाई होगी, जो इसके लिए दोषी हैं या सिर्फ उनको बचाया जाएगा? दोषी तो सरकार भी इसके लिए। ये 22 दुकानें नहीं टूटी, बल्कि व्यापार करने वालों की उम्मीद टूटी हैं। इन 22 दुकानों पर काम करने वालों की उम्मीदें टूटी हैं। न जाने कितने परिवार का रोजगार छीना गया है। सवाल तो सरकार से लेकर न्यायपालिका तक से होना चाहिए, क्या इतने दिनों तक सब वैध था, फिर ऐसा क्या हुआ कि अवैध हो गया? आम आदमी पिस गया और नेता-अफसर सब बच गए।
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