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ज्योतिषियों से नाराजगी, भाग्य की मार या बुद्धि की हार

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प्राचीन ग्रंथ में वर्णित है कि ‘गतश्रीर्गणकान्द्वेष्टि गतायुश्च चिकित्सकान्। गतश्रीश्च गतायुश्च ब्राह्मणान्द्वेष्टि भारत।’ यानी जब मनुष्य की श्री चली जाती है तो वह ज्योतिषियों से द्वेष करने लगता है, जब मनुष्य गतायु हो जाता है तो वैद्यों से द्वेष करने लगता है, जब मनुष्य गतश्री और गतायु हो जाता है तो वह विद्वतजनों से द्वेष करने लगता है।एक अन्य शास्त्र वचन के अनुसार, ‘मन्त्रे तीर्थे द्विजे देवे दैवज्ञे भेषजे गुरौ। यादृशी भावना यस्य सिद्धिर्भवति तादृशी।’ यानी मन्त्र, तीर्थ, देवता, ज्योतिषी, औषधि तथा गुरु पर जिसकी जैसी भावना होती है उसको वैसी ही सिद्धि भी मिलती है। जो विश्वास न करे, उसे उत्तर न दें जो लोग पहले ही से मान बैठते हैं अथवा जिनके मन में धारणा है कि ज्योतिष झूठा है, उनको जन्मपत्री का फल ठीक-ठीक मिलने पर सन्देह होता है। शास्त्र में लिखा भी गया है कि जो इस शास्त्र पर विश्वास न रखते हों उनको प्रश्न का उत्तर नहीं देना चाहिए, वरना परिणाम प्रतिकूल होता है। फलित ज्योतिष को झूठा ठहराने के सन्दर्भ में एक प्रसंग प्रचलित है, जिसमें बताया जाता है कि एक ज्योतिषी किसी राजा के पास गया और उसने राजा से कहा कि अमुक दिन आप की आयु समाप्त हो जाएगी, इस बात को सुन कर राजा चिन्ताग्रस्त हो गया। जब राजा के महामन्त्री को राजा की चिन्ता का कारण पता चला, तो उसने उस ज्योतिषी को राजा के सामने फिर से बुला कर पूछा कि, ‘ज्योतिषी जी आपकी आयु कितनी है?’ ज्योतिषी ने कहा, ‘अभी इतने वर्ष शेष हैं’। महामन्त्री ने शीघ्र अपनी तलवार निकाली और बेचारे ज्योतिषी महोदय का सिर धड़ से अलग कर दिया। महामन्त्री ने ज्योतिषी की हत्या करके यह संदेश पूरे राज दरबार में दिया कि ज्योतिष असत्य है। महामन्त्री ने राजा को बताया, ‘जो ज्योतिषी अपने आने वाले समय को स्वयं नहीं जानता, वह किसी दूसरे की आयु के बारे में कैसे बता सकता है।’ आज भी ज्योतिषियों के पास आकर लोग इस प्रसंग की चर्चा करते हैं और इसके माध्यम से सिद्ध करने का प्रयास करते हैं कि ज्योतिष शास्त्र असत्य है। इस प्रसंग का प्रमाण तो कहीं नहीं मिलता है, शायद ज्योतिष को न मानने वालों ने अपनी बात को सिद्ध करने के लिए इसे रचा हो।
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