नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल के उत्तर दिनाजपुर में तेजपत्ते की खेती महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बना रही है। 20 साल पहले तक यहां तेजपत्ते की खेती नहीं होती थी, लेकिन आज हालात पूरी तरह से अलग हैं। किसानों और व्यापारियों के बीच तेजपत्ते की खेती ने तेजी से जगह बनाई और देखते ही देखते 400 करोड़ रुपये का कारोबार खड़ा कर दिया है। किसान यहां पट्टे पर जमीन लेते हैं और तेजपत्ते के पेड़ लगाते हैं। करीब तीन साल के इंतजार के बाद एक पेड़ से अगले 25 साल तक के लिए, हर साल 15 से 20 किलो पत्ते तोड़े जाते हैं।
बाजार की अगर बात करें तो तेजपत्ता लगभग 5,000 रुपये प्रति क्विंटल के भाव से बिकता है। इस बदलाव ने न केवल किसानों की किस्मत बदली है, बल्कि स्थानीय महिलाओं के लिए कमाई का एक नया रास्ता भी खोल दिया है। पुरुषों का काम मुख्य तौर पर खेती और पेड़ उगने के बाद कटाई करने का होता है। वहीं, महिलाएं पत्तों की छंटाई और इसके बाद उन्हें सुखाने का काम करती हैं।
उत्तर दिनाजपुर में रहने वाले सुदेब सरकार भी तेजपत्ते का व्यापार करते हैं और उन्होंने 25 महिलाओं को रोजगार दे रखा है। द बेटर इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर दिनाजपुर में लगभग 80 फीसदी किसान तेजपत्ते की खेती कर रहे हैं। जबकि, लगभग 64 फीसदी महिलाएं पत्तियों को टहनियों से अलग करने और उन्हें सुखाने के काम में लगी हैं। सुदेब सरकार बताते हैं कि ज्यादातर महिलाएं गृहिणी हैं, लेकिन इस काम के जरिए उन्हें हर दिन 100 रुपये मिलते हैं।
कितनी होती है कमाई?तेजपत्ते के काम में लगीं 30 वर्षीय आलो रॉय बताती हैं कि उनके लिए यह काम सिर्फ पैसे कमाने का जरिया नहीं है, बल्कि खुद के लिए गर्व और आजादी महसूस करने का एक अवसर है। आलो रॉय पिछले तीन वर्षों से तेजपत्ता व्यापारियों के साथ काम कर रही हैं। पत्तियों को टहनियों से निकालने और उन्हें बिक्री के लिए तैयार करने की कला में अब उन्हें महारत हासिल हो चुकी है।
आलो रॉय सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक काम करती हैं। पहले वह टहनियों को इकट्ठा करती हैं और इसके बाद प्रत्येक पत्ती को सावधानी से टहनियों से अलग करती हैं। आलो रॉय बताती हैं कि वह हर दिन कम से कम 40-50 किलो पत्तियां अलग कर सकती हैं। पत्तियां छांटने के लिए उन्हें 3 रुपये प्रति किलो के हिसाब से भुगतान किया जाता है। कटाई के वक्त उन्हें 4.50 रुपये प्रति किलो मिलते हैं।
हाशिये पर नहीं, अब जरूरी हैं महिलाएंतेजपत्ते की तेजी के कारण आलो जैसी महिलाएं अब कृषि आधारित अर्थव्यवस्था में हाशिये पर नहीं हैं। बल्कि, इसका एक अहम और जरूरी हिस्सा बन चुकी हैं। तेजपत्ते की लगातार मांग और आसान रखरखाव ने इसे कई छोटे किसानों के लिए पसंदीदा फसल बना दिया है। जिला बागवानी अधिकारी संदीप महंता बताते हैं कि तेजपत्ते की खेती एक बड़ा उद्योग है, लेकिन यह अभी भी असंगठित क्षेत्र का हिस्सा है।
संदीप महंता ने बताया कि जिले में तेजपत्ता का उत्पादन लगातार बढ़ रहा है। 2020 में 240 हेक्टेयर जमीन पर तेजपत्ते की खेती होती थी, जो अब बढ़कर 318 हेक्टेयर हो गई है। इसी तरह 2020 में 769 मीट्रिक टन तेजपत्ते का उत्पादन होता था, 2024-2025 में यही उत्पादन बढ़कर 1019 मीट्रिक टन हो गया है। एक अनुमान के मुताबिक, लगभग 10,000 लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर इस खेती और इसके व्यापार से जुड़े हुए हैं।
कैसे गेम-चेंजर बनी तेजपत्ते की खेतीतेजपत्ते के पेड़ को कम पानी और कम रखरखाव की जरूरत होती है। ऐसे में छोटे किसानों के लिए यह किफायती भी है। पहले यहां किसान धान जैसी पारंपरिक फसलों पर निर्भर थे। इसमें पानी से लेकर रखरखाव तक, सबकुछ करने के बाद रिटर्न मामूली मिलता था। एक बीघा जमीन पर धान उगाने से साल में सिर्फ 30 से 40 हजार रुपये मिलते थे। समय और मेहनत भी काफी लगती थी। इसके बाद वक्त पर फसल को बाजार तक पहुंचाना एक और चुनौती थी।
इसके विपरीत तेजपत्ते की खेती यहां के लोगों के लिए एक गेम-चेंजर बन गई है। ऐसा नहीं है कि तेजपत्ते को केवल मसाले के तौर पर ही इस्तेमाल किया जाता है। पेड़ की टहनियों को पाउडर में पीसा जाता है। इसकी पत्तियों का इस्तेमाल प्राकृतिक रंग के तौर पर किया जाता है। और अगर, मसालों के मामले में देखा जाए, तो शाकाहारी से लेकर मांसाहारी खानों तक, तेजपत्ता स्वाद को डबल कर देता है।
बाजार की अगर बात करें तो तेजपत्ता लगभग 5,000 रुपये प्रति क्विंटल के भाव से बिकता है। इस बदलाव ने न केवल किसानों की किस्मत बदली है, बल्कि स्थानीय महिलाओं के लिए कमाई का एक नया रास्ता भी खोल दिया है। पुरुषों का काम मुख्य तौर पर खेती और पेड़ उगने के बाद कटाई करने का होता है। वहीं, महिलाएं पत्तों की छंटाई और इसके बाद उन्हें सुखाने का काम करती हैं।
उत्तर दिनाजपुर में रहने वाले सुदेब सरकार भी तेजपत्ते का व्यापार करते हैं और उन्होंने 25 महिलाओं को रोजगार दे रखा है। द बेटर इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर दिनाजपुर में लगभग 80 फीसदी किसान तेजपत्ते की खेती कर रहे हैं। जबकि, लगभग 64 फीसदी महिलाएं पत्तियों को टहनियों से अलग करने और उन्हें सुखाने के काम में लगी हैं। सुदेब सरकार बताते हैं कि ज्यादातर महिलाएं गृहिणी हैं, लेकिन इस काम के जरिए उन्हें हर दिन 100 रुपये मिलते हैं।
कितनी होती है कमाई?तेजपत्ते के काम में लगीं 30 वर्षीय आलो रॉय बताती हैं कि उनके लिए यह काम सिर्फ पैसे कमाने का जरिया नहीं है, बल्कि खुद के लिए गर्व और आजादी महसूस करने का एक अवसर है। आलो रॉय पिछले तीन वर्षों से तेजपत्ता व्यापारियों के साथ काम कर रही हैं। पत्तियों को टहनियों से निकालने और उन्हें बिक्री के लिए तैयार करने की कला में अब उन्हें महारत हासिल हो चुकी है।
आलो रॉय सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक काम करती हैं। पहले वह टहनियों को इकट्ठा करती हैं और इसके बाद प्रत्येक पत्ती को सावधानी से टहनियों से अलग करती हैं। आलो रॉय बताती हैं कि वह हर दिन कम से कम 40-50 किलो पत्तियां अलग कर सकती हैं। पत्तियां छांटने के लिए उन्हें 3 रुपये प्रति किलो के हिसाब से भुगतान किया जाता है। कटाई के वक्त उन्हें 4.50 रुपये प्रति किलो मिलते हैं।
हाशिये पर नहीं, अब जरूरी हैं महिलाएंतेजपत्ते की तेजी के कारण आलो जैसी महिलाएं अब कृषि आधारित अर्थव्यवस्था में हाशिये पर नहीं हैं। बल्कि, इसका एक अहम और जरूरी हिस्सा बन चुकी हैं। तेजपत्ते की लगातार मांग और आसान रखरखाव ने इसे कई छोटे किसानों के लिए पसंदीदा फसल बना दिया है। जिला बागवानी अधिकारी संदीप महंता बताते हैं कि तेजपत्ते की खेती एक बड़ा उद्योग है, लेकिन यह अभी भी असंगठित क्षेत्र का हिस्सा है।
संदीप महंता ने बताया कि जिले में तेजपत्ता का उत्पादन लगातार बढ़ रहा है। 2020 में 240 हेक्टेयर जमीन पर तेजपत्ते की खेती होती थी, जो अब बढ़कर 318 हेक्टेयर हो गई है। इसी तरह 2020 में 769 मीट्रिक टन तेजपत्ते का उत्पादन होता था, 2024-2025 में यही उत्पादन बढ़कर 1019 मीट्रिक टन हो गया है। एक अनुमान के मुताबिक, लगभग 10,000 लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर इस खेती और इसके व्यापार से जुड़े हुए हैं।
कैसे गेम-चेंजर बनी तेजपत्ते की खेतीतेजपत्ते के पेड़ को कम पानी और कम रखरखाव की जरूरत होती है। ऐसे में छोटे किसानों के लिए यह किफायती भी है। पहले यहां किसान धान जैसी पारंपरिक फसलों पर निर्भर थे। इसमें पानी से लेकर रखरखाव तक, सबकुछ करने के बाद रिटर्न मामूली मिलता था। एक बीघा जमीन पर धान उगाने से साल में सिर्फ 30 से 40 हजार रुपये मिलते थे। समय और मेहनत भी काफी लगती थी। इसके बाद वक्त पर फसल को बाजार तक पहुंचाना एक और चुनौती थी।
इसके विपरीत तेजपत्ते की खेती यहां के लोगों के लिए एक गेम-चेंजर बन गई है। ऐसा नहीं है कि तेजपत्ते को केवल मसाले के तौर पर ही इस्तेमाल किया जाता है। पेड़ की टहनियों को पाउडर में पीसा जाता है। इसकी पत्तियों का इस्तेमाल प्राकृतिक रंग के तौर पर किया जाता है। और अगर, मसालों के मामले में देखा जाए, तो शाकाहारी से लेकर मांसाहारी खानों तक, तेजपत्ता स्वाद को डबल कर देता है।
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