कटनी: जिले का देवराकलां गांव अपने खास किस्म के आम के बागानों के कारण देशभर में जाना जाता है। यहां 50 एकड़ में फैले बाग में 1700 से अधिक आम के पेड़ हैं, जिनकी नींव 1989 में स्वं. डॉ. एपी सिंह ने रखी थी। इस साल बाग को रीवा निवासी ठेकेदार नाल पासवान ने 22 लाख रुपये में ठेके पर लिया है, जहां आम तोड़ने वाले दिलीप पासवान जैसे लोगों को रोजगार मिलता है और वे इस काम से संतुष्ट हैं।
प्रोडक्शन में भी अव्वल है बाग
कटनी मुख्यालय से लगभग 17 किलोमीटर दूर स्थित देवराकलां गांव का यह आम का बाग न केवल उत्पादन में अव्वल है, बल्कि हरी-भरी धरोहर के रूप में भी पहचाना जाता है। इस बाग में आम्रपाली, मल्लिका, दशहरी, कलमी, सुंदरजा, बादामी, बंबईया, चौसा और सफेदा आम सहित 15 से अधिक प्रजातियां हैं।
कटनी के पूर्व कांग्रेस विधायक भी रहे हैं डॉ. सिंह
स्वं. डॉ. एपी सिंह, जिन्होंने इस बाग की नींव रखी थी, वह कांग्रेस के पूर्व विधायक भी रहे हैं। उनके परिवार के सदस्य राय प्रताप सिंह आज इस विरासत को सहेज रहे हैं। राय प्रताप कहते हैं, 'यह बाग हमारे लिए आम का व्यापार नहीं, एक परंपरा है।' हर साल इस बाग से हजारों क्विंटल आम कटनी की मंडी से होते हुए जबलपुर, रीवा, सतना, नागपुर, दिल्ली, कोलकाता और मुंबई जैसे बड़े शहरों तक भी पहुंचते हैं।
ऑर्गेनिक तरीके से होत है खेती
इस साल रीवा निवासी ठेकेदार नाल पासवान ने इसे 22 लाख रुपये में ठेके पर लिया है। उनका कहना है कि यहां सिर्फ देसी खाद और ऑर्गेनिक तरीकों से खेती होती है, जिससे आम ज्यादा मीठे और सुगंधित होते हैं।
बेहद सावधानी से होती है आम तोड़ने की प्रक्रिया
इस बाग में वर्षों से काम कर रहे दिलीप पासवान बताते हैं, 'आम तोड़ने की प्रक्रिया बेहद सावधानी से होती है। हम सुबह-सुबह पेड़ों को चिन्हित करते हैं, फिर फंदों से आम तोड़कर उन्हें छांटते, पेपर में लपेटते और केमिकल रहित तरीके से पकाते हैं। इस काम के लिए हमें 400 रुपये प्रतिदिन मिलते हैं, लेकिन इससे ज्यादा हमें इस काम को करने में जो संतोष और खुशी मिलती है, वह अनमोल है। इस बाग की वजह से आसपास के लोगों के लिए रोजगार भी बना रहता है।'
प्रोडक्शन में भी अव्वल है बाग
कटनी मुख्यालय से लगभग 17 किलोमीटर दूर स्थित देवराकलां गांव का यह आम का बाग न केवल उत्पादन में अव्वल है, बल्कि हरी-भरी धरोहर के रूप में भी पहचाना जाता है। इस बाग में आम्रपाली, मल्लिका, दशहरी, कलमी, सुंदरजा, बादामी, बंबईया, चौसा और सफेदा आम सहित 15 से अधिक प्रजातियां हैं।
कटनी के पूर्व कांग्रेस विधायक भी रहे हैं डॉ. सिंह
स्वं. डॉ. एपी सिंह, जिन्होंने इस बाग की नींव रखी थी, वह कांग्रेस के पूर्व विधायक भी रहे हैं। उनके परिवार के सदस्य राय प्रताप सिंह आज इस विरासत को सहेज रहे हैं। राय प्रताप कहते हैं, 'यह बाग हमारे लिए आम का व्यापार नहीं, एक परंपरा है।' हर साल इस बाग से हजारों क्विंटल आम कटनी की मंडी से होते हुए जबलपुर, रीवा, सतना, नागपुर, दिल्ली, कोलकाता और मुंबई जैसे बड़े शहरों तक भी पहुंचते हैं।
ऑर्गेनिक तरीके से होत है खेती
इस साल रीवा निवासी ठेकेदार नाल पासवान ने इसे 22 लाख रुपये में ठेके पर लिया है। उनका कहना है कि यहां सिर्फ देसी खाद और ऑर्गेनिक तरीकों से खेती होती है, जिससे आम ज्यादा मीठे और सुगंधित होते हैं।
बेहद सावधानी से होती है आम तोड़ने की प्रक्रिया
इस बाग में वर्षों से काम कर रहे दिलीप पासवान बताते हैं, 'आम तोड़ने की प्रक्रिया बेहद सावधानी से होती है। हम सुबह-सुबह पेड़ों को चिन्हित करते हैं, फिर फंदों से आम तोड़कर उन्हें छांटते, पेपर में लपेटते और केमिकल रहित तरीके से पकाते हैं। इस काम के लिए हमें 400 रुपये प्रतिदिन मिलते हैं, लेकिन इससे ज्यादा हमें इस काम को करने में जो संतोष और खुशी मिलती है, वह अनमोल है। इस बाग की वजह से आसपास के लोगों के लिए रोजगार भी बना रहता है।'
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