कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक बेहद संवेदनशील मामले में हस्तक्षेप करते हुए रूसी महिला नीना कुटिना और उनकी दो बेटियों के निर्वासन पर फिलहाल रोक लगा दी है। यह मामला तब सामने आया जब नीना को इस महीने की शुरुआत में कर्नाटक के गोकर्ण स्थित रामतीर्थ हिल की एक गुफा में अपनी दोनों बेटियों के साथ रह रहे हुए पाया गया था। अदालत ने संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार संधि (UNCRC) का हवाला देते हुए कहा कि बच्चों के सर्वोत्तम हित को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, और जब तक इस पहलू पर ठोस निर्णय नहीं लिया जाता, निर्वासन उचित नहीं है।
आध्यात्मिक जीवन की चाह में गुफा तक पहुंचीं नीना
नीना कुटिना एक रूसी नागरिक हैं, जिन्होंने भारत में आठ साल पहले प्रवेश किया था। हालांकि अब तक वह अवैध रूप से देश में रह रही थीं क्योंकि उनके वीजा की अवधि समाप्त हो चुकी है। पूछताछ में नीना ने बताया कि वह गोवा से गोकर्ण आई थीं ताकि प्रकृति के करीब रहकर एक आध्यात्मिक और शांत जीवन जी सकें। उनकी मंशा थी कि वह भीड़भाड़ और आधुनिक समाज से दूर एकांत में जीवन बिताएं।
9 जुलाई को गुफा में पाए जाने के बाद प्रशासन ने नीना और उनकी दोनों बेटियों को टुमकुरु जिले के एक आश्रय गृह में भेज दिया था, जहां से यह मामला न्यायालय तक पहुंचा।
कोर्ट ने माना—बच्चों के हित सर्वोपरि
नीना की वकील बीना पिल्लई ने अदालत में कहा कि निर्वासन के निर्णय से बच्चों की भलाई को गंभीर खतरा हो सकता है। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय बाल अधिकार संधि के अनुच्छेद 3 का हवाला दिया, जिसके अनुसार बच्चों से जुड़े हर फैसले में उनकी भलाई को सबसे ऊपर रखा जाना चाहिए।
सरकार की ओर से पेश हुए सहायक सॉलिसिटर जनरल ने बताया कि नीना की बेटियों के पास वैध यात्रा दस्तावेज नहीं हैं, और इसलिए निर्वासन की प्रक्रिया जटिल हो सकती है। इस पर हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में जल्दबाज़ी नहीं की जा सकती, क्योंकि यह केवल कानूनी नहीं बल्कि मानवीय विषय भी है।
पूर्व पति का पक्ष: इजरायली व्यवसायी के गंभीर आरोप
इस बीच नीना के पूर्व पति डॉर गोल्डस्टीन, जो एक इजरायली व्यवसायी हैं, ने सामने आकर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा कि वे वर्षों से अपनी बेटियों की साझा कस्टडी के लिए प्रयासरत हैं। उन्होंने 2017 में गोवा पुलिस में नीना के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी, जिसमें बच्चों को मानसिक रूप से प्रभावित करने, पिता से दूर रखने और आर्थिक शोषण के आरोप शामिल थे। उन्होंने यह भी कहा कि नीना उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित करती थीं।
मानवाधिकार बनाम आप्रवास कानून: एक अहम बहस
यह मामला सिर्फ एक विदेशी नागरिक के निर्वासन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारत में मानवाधिकारों, बाल सुरक्षा कानूनों और अंतरराष्ट्रीय संधियों के अनुपालन की दिशा में एक नई बहस को जन्म देता है। सरकार की ओर से सहायक सॉलिसिटर जनरल ने अदालत को बताया कि बच्चों के पास कोई वैध दस्तावेज नहीं हैं, लेकिन अदालत ने स्पष्ट किया कि इस स्तर पर निर्वासन से बच्चों की भलाई को खतरा हो सकता है।
अंतिम निर्णय की प्रतीक्षा, अगली सुनवाई अहम
फिलहाल कोर्ट ने निर्वासन पर रोक लगा दी है, लेकिन अंतिम निर्णय आगामी सुनवाई में लिया जाएगा। नीना और उनकी बेटियों को टुमकुरु के शरण गृह में रखा गया है, जहां से उनकी देखभाल की जा रही है। यह मामला आगे चलकर भारत में विदेशी महिलाओं और उनके बच्चों के मानवाधिकारों की रक्षा से जुड़े कई नीतिगत सवालों को जन्म दे सकता है।
नीना कुटिना का मामला एक जटिल सामाजिक, कानूनी और मानवीय परिप्रेक्ष्य को सामने लाता है। जहां एक ओर वीज़ा कानून का उल्लंघन गंभीर विषय है, वहीं दूसरी ओर बच्चों की सुरक्षा और उनका भविष्य उससे भी बड़ा सवाल है। अदालत का फैसला न केवल भारत की संवैधानिक मूल्यों की झलक देता है, बल्कि यह दर्शाता है कि न्यायपालिका बच्चों के अधिकारों और मानवाधिकारों के प्रति कितनी सजग है।
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