Mumbai , 31 जुलाई . जब हम पुरानी अभिनेत्रियों की बात करते हैं, तो उनकी फिल्मों और पुरस्कारों के अलावा, उनके जीवन के अनकहे किस्सों और अनुभवों का भी जिक्र होता है. मीना कुमारी की जिंदगी में भी एक ऐसी घटना हुई थी, जिसने न सिर्फ निर्माताओं के बल्कि उनके चाहने वालों के भी होश उड़ा दिए थे. यह घटना तब हुई जब उनका सामना मध्यप्रदेश के बीहड़ में शूटिंग के दौरान असली डाकुओं से हुआ था, उन्होंने अभिनेत्री को चाकू दिखाकर उनसे अजीबोगरीब मांग की थी.
‘ट्रेजेडी क्वीन’ के नाम से मशहूर मीना कुमारी का असली नाम माहजबी बानो है, लेकिन इंडस्ट्री ने उन्हें मीना कुमारी नाम दिया. 1 अगस्त 1933 को अली बक्स और इकबाल बेगम के घर महजबी बानो का जन्म हुआ था. मीना के पैदा होने पर उनके पिता बिल्कुल भी खुश नहीं थे, क्योंकि उन्हें एक बेटे की चाहत थी. मीना के जन्म के बाद उन्हें एक अनाथालय में छोड़ दिया गया था, लेकिन कुछ घंटों बाद उन्होंने अपना मन बदल लिया और उन्हें वापस घर ले आए. वह अली और इकबाल की दूसरी बेटी थीं और उनकी और दो बहनें थीं. बड़ी बहन का नाम खुर्शीद जूनियर और छोटी बहन का नाम महलीका था.
मीना कुमारी को यूं तो फिल्मों का कोई शौक नहीं था, लेकिन वह पढ़ाई से बचने के लिए अपने माता-पिता के साथ फिल्म स्टूडियो आ जाया करती थीं. एक दिन निर्देशक विजय भट्ट ने उन्हें फिल्म ‘लेदरफेस’ में कास्ट किया. इस फिल्म में काम करने के लिए उन्हें 25 रुपये मिले. उस वक्त उनकी उम्र महज चार साल थी.
फिल्म के बाद मीना का स्कूल में एडमिशन कराया गया और उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की और फिर 1952 में लीड एक्ट्रेस के तौर पर फिल्म ‘बैजू बावरा’ से करियर की शुरुआत की. इसके बाद उन्होंने ‘परिणीता’, ‘दिल एक मंदिर’, ‘फुटपाथ’, ‘शारदा’, ‘साहिब बीबी और गुलाम’, ‘काजल’, ‘फूल और पत्थर’, ‘मैं चुप रहूंगी’, ‘दो बीघा जमीन’, ‘चांदनी चौक’, ‘मेम साहिब’, ‘दिल अपना और प्रीत पराई’, ‘आरती’, ‘बहू बेगम’, और ‘पाकीजा’ जैसी सफल फिल्में की.
‘परिणीता’ के लिए उन्हें फिल्मफेयर बेस्ट एक्ट्रेस अवॉर्ड मिला. इसके अलावा, ‘साहिब बीबी और गुलाम’ के जरिए उन्होंने चार फिल्मफेयर अवॉर्ड अपने नाम किए. 1973 में ‘पाकीजा’ के लिए मरणोपरांत नामांकन प्राप्त करने वाली वह पहली अभिनेत्री थीं.
उनकी जिंदगी के सबसे दिलचस्प किस्सों में से एक किस्सा मध्यप्रदेश से जुड़ा हुआ है, जब उन्होंने डाकुओं के हाथ पर नुकीले चाकू से ऑटोग्राफ दिया था.
मशहूर पत्रकार विनोद मेहता ने मीना कुमारी की जीवनी ‘मीना कुमारी- अ क्लासिक बायोग्राफी’ लिखी, जिसमें उन्होंने बताया, ”आउटडोर शूटिंग पर कमाल अमरोही (मीना कुमारी के पति और फिल्म निर्माता थे) अक्सर दो कारों पर जाया करते थे. एक बार दिल्ली जाते हुए मध्यप्रदेश में शिवपुरी में उनकी कार का पेट्रोल खत्म हो गया. अमरोही ने मीना कुमारी से कहा कि हम रात कार में सड़क पर ही बिताएंगे. उनको पता नहीं था कि यह डाकुओं का इलाका है. आधी रात के बाद करीब एक दर्जन डाकुओं ने उनकी कारों को घेर लिया. उन्होंने कारों में बैठे हुए लोगों से कहा कि वो नीचे उतरें. कमाल अमरोही ने कार से उतरने से इनकार कर दिया और कहा कि जो भी मुझसे मिलना चाहता है, मेरी कार के पास आए.”
उन्होंने आगे बताया, ”थोड़ी देर बाद एक सिल्क का पायजामा और कमीज पहने हुए शख्स उनके पास आया. उसने पूछा, ‘आप कौन हैं ?’ अमरोही ने जवाब दिया, ‘मैं कमाल हूं और इस इलाके में शूटिंग कर रहा हूं. हमारी कार का पेट्रोल खत्म हो गया है.’ डाकू को लगा कि वो रायफल शूटिंग की बात कर रहे हैं. लेकिन जब उन्हें बताया गया कि ये फिल्म शूटिंग है और दूसरी कार में मीना कुमारी भी बैठी हैं, तो सभी डाकुओं के हावभाव बदल गए. डाकुओं के सरदान ने तुरंत सभी के लिए संगीत, नाच और खाने का इंतजाम कराया. उन्हें सोने की जगह दी और सुबह उनकी कार के लिए पेट्रोल भी मंगवा दिया. जब मीना कुमारी अपनी टीम के साथ वहां से सुबह जाने लगे तो डाकुओं के सरदार ने मीना कुमारी को नुकीला चाकू दिखाया, जिससे एक बार तो वह डर गई थीं, लेकिन उसने उस नुकीले चाकू से हाथ पर उनका ऑटोग्राफ मांगा, जैसे-तैसे मीना कुमारी ने ऑटोग्राफ दिया. अगले शहर में जा कर उन्हें पता चला कि वह मध्यप्रदेश का उस समय का नामी डाकू अमृत लाल था.”
बता दें कि 1952 में मीना कुमारी ने निर्देशक कमाल अमरोही से शादी की थी और 31 मार्च 1972 को, 38 साल की उम्र में, लीवर सिरोसिस के चलते मीना कुमारी का निधन हो गया.
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पीके/जीकेटी
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