सहरसा, 22 अप्रैल . भारतीय सेना से 17 साल की सेवा के बाद 2018 में रिटायर हुए सहरसा के विकास कुमार मिश्रा ने प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना की सहायता से मछली पालन और खेती को अपनाकर न केवल आत्मनिर्भरता हासिल की, बल्कि युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गए हैं.
विकास ने अपनी पैतृक जमीन पर मछली पालन और फलदार वृक्षों की खेती शुरू की, जिससे आज उनकी सालाना कमाई पांच लाख रुपए से अधिक हो रही है. उनकी सफलता की कहानी सहरसा ही नहीं, पूरे बिहार में चर्चा का विषय बनी हुई है.
विकास ने 2001 में सेना में सेवा शुरू की थी. रिटायरमेंट के बाद उन्होंने अपने पिता की यादों से जुड़ी जमीन को कर्मभूमि बनाया. उनके पिता एक शिक्षक थे और रिटायरमेंट के बाद खेती करते थे. विकास ने सरकारी योजनाओं का लाभ उठाते हुए जल जीवन हरियाली अभियान के तहत तालाब खुदवाया. साथ ही, प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना से उन्हें 3.5 लाख रुपए की आर्थिक सहायता मिली. इस राशि से उन्होंने एक बीघा जमीन पर मछली पालन का व्यवसाय शुरू किया.
आज उनके तालाब में 25 क्विंटल से अधिक मछली का उत्पादन होता है, जिससे पांच लाख रुपए से ज्यादा की कमाई होती है. तालाब के आसपास उन्होंने आम, अमरूद और लीची जैसे फलदार पेड़ लगाए हैं, जो अतिरिक्त आय का स्रोत हैं. मछली पालन में दक्षता के लिए विकास ने किशनगंज और मुंबई में छह महीने की ट्रेनिंग ली. वह अलंकारी, कबई, कतला, रेहु और सिंघी जैसी मछलियों का उत्पादन करते हैं, जिनके बीज पश्चिम बंगाल से मंगवाते हैं. बायोफ्लॉक तकनीक का उपयोग कर वह पर्यावरण के अनुकूल मछली पालन कर रहे हैं.
विकास ने समाचार एजेंसी को बताया कि कोसी क्षेत्र में पानी का स्तर ऊंचा होने के बावजूद मछली उत्पादन कम है. यहां मछली की मांग ज्यादा है, लेकिन लोग ओडिशा और बंगाल पर निर्भर हैं. उन्होंने बताया कि ट्रेनिंग के दौरान वैज्ञानिकों ने उन्हें मछली पालन में लाभ कमाने के तरीके सिखाए.
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पीएसएम/एकेजे
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