Next Story
Newszop

ट्रंप के 50 फ़ीसदी टैरिफ़ से निपटने के लिए भारत के पास अब भी बचे हैं ये रास्ते

Send Push
M WATSON/AFP via Getty Images ट्रंप प्रशासन ने भारत के रूस से तेल आयात पर आपत्ति जताई है

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 50 प्रतिशत का टैरिफ़ लगाया है, जो कि एशिया क्षेत्र में सबसे ऊंचा अमेरिकी टैरिफ़ है. ये टैरिफ़ 27 अगस्त से लागू हो जाएगा.

पहले ट्रंप ने भारत पर 25 प्रतिशत का टैरिफ़ लगाया था. इसके बाद भारत के रूस से तेल ख़रीदने पर नाराज़गी जताते हुए ट्रंप ने 25 प्रतिशत के अतिरिक्त टैरिफ़ की भी घोषणा कर दी थी.

इस पर भारत ने सवाल किया कि अमेरिका और यूरोप ख़ुद रूस से यूरेनियम और उर्वरक ख़रीदते हैं, ऐसे में भारत के ख़िलाफ़ दोहरे मापदंड क्यों अपनाए जा रहे हैं?

बीबीसी हिन्दी के साप्ताहिक कार्यक्रम, 'द लेंस' में कलेक्टिव न्यूज़रूम के डायरेक्टर ऑफ़ जर्नलिज़म मुकेश शर्मा ने भारत पर अमेरिका के लगाए टैरिफ़, भारत-अमेरिका संबंध और मौजूदा हालात में भारत की चुनौतियों और विकल्पों पर बात की.

बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिएयहाँ क्लिककरें

इस चर्चा में मुकेश शर्मा के साथ भारत के पूर्व विदेश सचिव शशांक और कूटनीतिक मामलों पर नज़र रखने वाली पत्रकार स्मिता शर्मा शामिल हुईं.

क्या भारत और अमेरिका के संबंध बदल रहे हैं? image BBC

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दूसरी बार सत्ता में आने के बाद से टैरिफ़ का मुद्दा लगातार उठ रहा है. टैरिफ़ को लेकर ट्रंप भारत पर लगातार निशाना साधते रहे.

हालांकि, इससे पहले भारत और अमेरिका के संबंध प्रशासन दर प्रशासन बेहतर होते बताए जा रहे थे. ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या भारत और अमेरिका के संबंध बदल रहे हैं.

भारत के पूर्व विदेश सचिव शशांक का कहना है कि पिछले 20-25 साल से भारत और अमेरिका में जो भी सरकार या प्रशासन आए, उन्होंने आपसी रिश्ते को विश्व में बन रहे नए मापदंडों में ढालने की कोशिश जारी रखी.

वहीं भारत और अमेरिका के बीच संबंध की जो हालिया स्थिति है, उसकी वजह एक्सपर्ट्स ट्रंप का रवैया मानते हैं. भारत के प्रति ट्रंप के रवैये को पत्रकार स्मिता शर्मा एक पर्सन, पर्सनैलिटी और पॉलिटिक्स की प्रॉब्लम के तौर पर देखती हैं.

वह कहती हैं, "एक तरफ़ डोनाल्ड ट्रंप हैं, उनकी शख़्सियत है, उनकी राजनीति है. डोनाल्ड ट्रंप के न कोई उसूल हैं, न उनके कोई नियम-क़ानून हैं. उनके पहले प्रशासन को भी हमें याद रखना होगा जब वह 2016 में राष्ट्रपति बनकर आए थे."

स्मिता शर्मा कहती हैं, "उस दौरान भी डोनाल्ड ट्रंप ने ऐसे कई फ़ैसले लिए थे, जो भारत के लिए सही नहीं थे. ट्रंप प्रशासन के दबाव के कारण ही मई 2019 में भारत ने ईरान से अपना तेल आयात बिल्कुल बंद कर दिया था."

image MANDEL NGAN/AFP via Getty Images भारत और अमेरिका के बीच संबंध की जो हालिया स्थिति है, उसकी वजह एक्सपर्ट्स राष्ट्रपति ट्रंप का रवैया मानते हैं

स्मिता कहती हैं कि अमेरिका सहित दूसरे देशों को लगता है कि भारत ने जो कई तरह के व्यापार उपाय किए हैं, उसके कारण वे भारत के घरेलू बाज़ार में उस तरह की बढ़त नहीं बना पा रहे हैं, जैसा वे चाहते हैं.

पत्रकार स्मिता शर्मा और भारत के पूर्व विदेश सचिव शशांक अमेरिका-भारत के बीच संबंधों में आए इस बदलाव की वजह जिओ-पॉलिटिक्स भी मानते हैं.

शशांक कहते हैं, "चीन ने कहा कि अब वह अगले 20 साल में दुनिया की नंबर वन ताक़त बन जाएगा और अमेरिका को पीछे छोड़ देगा तो मुझे लगता है कि ट्रंप को यह एक रियलिटी चेक के मौक़े की तरह लगा. उन्हें लगा कि इस मौक़े के तौर पर ब्रिक्स के दो प्रमुख देश भारत और ब्राज़ील उनकी पकड़ में आ सकते हैं."

स्मिता शर्मा के मुताबिक़, अमेरिकी प्रशासन में यह बात भी रही है कि भारत अपनी गुट निरपेक्षता की नीति को छोड़कर कोई एक पक्ष चुने, जो कि भारत की विदेश नीति के उसूल में नहीं है.

  • अमेरिकी मीडिया में भारत के ख़िलाफ़ ट्रंप की सख़्ती के पीछे बताए जा रहे हैं ये कारण
  • टैरिफ़ क्या होता है और जानिए किसे चुकानी पड़ती है इसकी क़ीमत
  • ट्रंप के 50 फ़ीसदी टैरिफ़ को भारत चुपचाप सह लेगा या इस रूप में दे सकता है जवाब
भारत अपनी गुट निरपेक्षता कायम रख पाएगा? image BBC

भारत का रुख़ एक तरह से गुट निरपेक्ष का रहा है. भारत गुट निरपेक्ष रहते हुए दिशा दिखाने की कोशिश करता है. हालांकि, मौजूदा हालात में अमेरिका.. रूस को लेकर भारत पर एक तरह से दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है.

क्या भारत गुट निरपेक्ष रह पाएगा और क्या यह आज के समय में व्यावहारिक समाधान है?

स्मिता शर्मा कहती हैं, "यह समाधान बना रहेगा. हमारी घरेलू राजनीति में चाहे जितने भी विवाद हों, लेकिन हमारी विदेश नीति के कुछ सिद्धांत रहे हैं. उनमें से एक यह है कि भारत किसी बड़ी पश्चिमी शक्ति का या किसी बड़े कैंप के युद्ध में किसी का सहयोगी कभी नहीं बनेगा."

हालांकि, वह कई मामलों में भारत की स्थिति में आई तब्दीलियों का ज़िक्र भी करती हैं.

वह कहती हैं, "यह और बात है कि पिछले कुछ सालों में हमने देखा है कि मोदी सरकार के तहत इसराइल के साथ रिश्ते ज़्यादा नज़दीक हो गए. फ़लस्तीन के मुद्दे पर हम अपनी परंपरागत स्थिति से काफ़ी हद तक शिफ़्ट हुए, उस पर भी संतुलन साधने की कोशिश की गई."

स्मिता कहती हैं कि पिछले कुछ सालों से ऐसा लग रहा था कि भारत की अमेरिका से नज़दीकियां कुछ ज़्यादा बढ़ी हैं.

image ALEXANDER NEMENOV/AFP via Getty Images विश्लेषकों का मानना है कि भारत रूस के साथ अपने संबंधों में खटास नहीं चाहता है

वह कहती हैं, "भारत ने रूस के साथ पिछले कुछ वर्षों में रक्षा क्षेत्र में आयात को काफ़ी हद तक कम किया. कुछ साल पहले तक भारत रूस से 75 प्रतिशत हथियार और उपकरण वग़ैरह आयात कर रहा था. अभी रूस से यह आयात 38 से 40 प्रतिशत है. अब भारत.. फ्रांस, इसराइल और अमेरिका इन सबसे इक्विपमेंट ले रहा है."

शशांक कहते हैं कि भारत रूस के साथ अपने संबंधों में खटास नहीं चाहता है, लेकिन जो यूरोप में पिछले दो-तीन साल से संघर्ष चल रहा है, उसमें ऐसा लगा कि रूस का प्रभाव क्षेत्र कम होता जा रहा है और चीन का ज़्यादा बढ़ता जा रहा है.

इसके साथ ही वह यह भी कहते हैं, "भारत की लगातार कोशिश रही है कि रूस भारत का मित्र बना रहे और चीन-रूस के रिश्ते, ऐसे न हों कि चीन विश्व में रूस का स्थान लेकर या सोवियत संघ का स्थान लेकर एक जी टू टाइप की रिलेशनशिप बनाने का प्रयास करे."

  • डोनाल्ड ट्रंप भारत से क्यों नाराज़ हैं? ये हैं पांच बड़ी वजहें
  • रूसी तेल का सबसे बड़ा ख़रीदार चीन, फिर भी ट्रंप के निशाने पर भारत
  • 'ट्रंप इसी राह पर चले तो...', अमेरिकी टैरिफ़ से क्या भारत और चीन आएंगे क़रीब?
अमेरिकी टैरिफ़ को लेकर भारत क्या कर सकता है? image BBC

स्मिता शर्मा इस समय भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती ट्रंप से डील करना मानती हैं. वह कहती हैं कि ट्रंप की जैसी शख़्सियत है, उनसे डील करने के लिए ज़रूरी है कि या तो आप उनके सामने खड़े हो जाएं, उन्हें चुनौती दें.

लेकिन उनके मुताबिक़ दुर्भाग्य से भारत के लिए ट्रंप को चुनौती देने या अमेरिका पर जवाबी टैरिफ़ लगाने का विकल्प नहीं है.

इसकी वजह बताते हुए वह कहती हैं, "भारत के निर्यातक जो सामान अमेरिका को निर्यात करते हैं, इनमें से बहुत सारे ऐसे प्रोडक्ट्स हैं, जिन्हें अमेरिका दूसरे प्रतिस्पर्धी बाज़ारों से सोर्स कर सकता है."

वे प्रतिस्पर्धी बाज़ार बांग्लादेश, इंडोनेशिया, कंबोडिया, वियतनाम के हैं, जिन पर अमेरिका ने भारत की अपेक्षा कम टैरिफ़ लगाए हैं.

स्मिता कहती हैं कि भारत, चीन की तरह सेमीकंडक्टर्स या रेयर अर्थ क्रिटिकल मिनरल्स एक्सपोर्ट नहीं करता है, जिसके आधार पर ट्रंप के सामने खड़ा हुआ जा सके.

वह कहती हैं, "एक बड़ी चुनौती यह है कि ट्रंप के साथ नेगोशिएट करने के लिए आपके पास इस वक़्त क्या है. क्योंकि आप एग्रीकल्चर, डेयरी और फ़िशरीज़ को खोलेंगे नहीं, तो फिर दूसरे विकल्प क्या हैं."

image SAJJAD HUSSAIN/AFP via Getty Images एक्सपर्ट्स के मुताबिक़ भारत को इस वक़्त देखना पड़ेगा कि वह अमेरिका से क्या कुछ ख़रीद सकता है

स्मिता शर्मा के मुताबिक़, एग्रीकल्चर और फ़िशरीज़ जैसे क्षेत्रों को खोलना भारत की सत्ता में आने वाली किसी भी पार्टी के लिए मुश्किल है.

ऐसे में भारत को क्या करना चाहिए और भारत क्या कर सकता है?

इस सवाल के जवाब में स्मिता शर्मा कहती हैं, "भारत को इस वक़्त देखना पड़ेगा कि वह अमेरिका से क्या कुछ ख़रीद सकता है. भारत ट्रंप को अमेरिका से ज़्यादा से ज़्यादा रक्षा उपकरण ख़रीदने का ऑफ़र दे सकता है."

उनके मुताबिक़, इसके अलावा अब भारत को अपने घरेलू आर्थिक सुधार में तेज़ी लानी ही होगी क्योंकि आज सब कुछ ट्रांजैक्शनल यानी बिज़नेस से जुड़ा है और वही असली ताक़त है.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, एक्स, इंस्टाग्राम, और व्हॉट्सऐप पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)

  • 'दुश्मन अगर ख़ुद को बर्बाद करने पर तुला हो तो न दें दख़ल', ट्रंप की भारत को धमकी पर जानकार क्या बोले
  • रूस से तेल की सप्लाई घटी तो भारत के पास क्या विकल्प होंगे और इनका असर क्या होगा?
  • ट्रंप और पुतिन की अगले सप्ताह मुलाक़ात, रूस-यूक्रेन जंग रोकने पर क्या बनेगी बात?
image
Loving Newspoint? Download the app now