भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने गुरुवार को अफ़ग़ानिस्तान के कार्यकारी विदेश मंत्री आमिर ख़ान मुत्ताकी से फ़ोन पर बात की.
यह पहली बार है कि दोनों देशों के विदेश मंत्रियों ने बातचीत के बारे में सार्वजनिक तौर पर बयान जारी किया है.
एस जयशंकर ने फ़ोन कॉल के दौरान, पहलगाम में हुए चरमपंथी हमले को लेकर मुत्ताकी की ओर से की गई निंदा की सराहना की.
भारत ने अभी तक तालिबान सरकार को मान्यता नहीं दी है. भारत काबुल में एक समावेशी सरकार के गठन की वक़ालत करता रहा है.
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बीते समय में तालिबान और पाकिस्तान के बीच संबंध ख़राब होते गए हैं.
पाकिस्तान अपने यहां मौजूद लाखों अफ़ग़ान शरणार्थियों को वापस भेज रहा है. इसका अफ़ग़ानिस्तान विरोध करता रहा है.
इसके अलावा दोनों देशों के बीच सीमा-विवाद भी रह रह कर बड़ा मुद्दा बनता रहा है. ऐसे में क्या भारत तालिबान को मान्यता दिए बग़ैर, अफ़ग़ानिस्तान से अपने संबंध सुधारना चाह रहा है?
हालांकि हाल के महीनों में भारत और तालिबान के बीच संपर्क बढ़ा है. जनवरी में भारत के विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने दुबई में आमिर ख़ान मुत्ताकी से की थी.
ताज़ा फ़ोन कॉल की जानकारी एस जयशंकर ने अपने अकाउंट पर दी है.
गुरुवार को एस जयशंकर ने एक्स पर , "कार्यकारी अफ़ग़ान विदेश मंत्री मौलवी आमिर ख़ान मुत्ताकी से आज शाम अच्छी बातचीत हुई. हम पहलगाम आतंकी हमले की उनकी निंदा की सराहना करते हैं."
"उन्होंने झूठी और निराधार रिपोर्टों के माध्यम से भारत और अफ़ग़ानिस्तान के बीच अविश्वास पैदा करने की हाल की कोशिशों को दृढ़ता से ख़ारिज किया. मैंने इसका स्वागत किया."
एस जयशंकर ने आगे कहा, "बातचीत में अफ़ग़ान लोगों के साथ हमारी पारंपरिक दोस्ती और उनके विकास की ज़रूरतों के प्रति लगातार समर्थन का ज़िक्र किया गया. सहयोग को आगे ले जाने के तरीक़ों और साधनों पर चर्चा की गई."
की ओर से दी गई जानकारी में कहा गया, "रिपब्लिक ऑफ़ अफ़ग़ानिस्तान के विदेश मंत्री मौलवी आमिर ख़ान मुत्ताकी और रिपब्लिक ऑफ़ इंडिया के विदेश मंत्री जयशंकर के बीच फ़ोन पर बातचीत हुई. यह बातचीत द्विपक्षीय संबंधों, व्यापार और कूटनीतिक रिश्ते को मजबूत करने पर केंद्रित थी."
मुंबई में अफ़ग़ान कांसुलेट की ओर से जारी के अनुसार, "विदेश मंत्री मुत्ताकी ने भारत को एक महत्वपूर्ण क्षेत्रीय देश बताया और अफ़ग़ानिस्तान-भारत संबंधों की ऐतिहासिक प्रकृति का ज़िक्र किया. उन्होंने इस संबंध के और मज़बूत होने की उम्मीद जताई. उन्होंने संतुलित विदेश नीति और सभी देशों के साथ रचनात्मक संबंधों के अवसर तलाशने की अफ़ग़ानिस्तान की प्रतिबद्धता को भी दोहराया."
बयान के मुताबिक़, "इस बातचीत में मुत्ताकी ने अफ़ग़ान व्यापारियों और मरीजों के लिए वीज़ा जारी करने में सहूलियत देने और भारत की जेलों में बंद अफ़ग़ान क़ैदियों की रिहाई और उनकी वापसी की अपील की. जयशंकर ने दोनों देशों के बीच राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्र में सहयोग की अहमियत को रेखांकित किया."
इस बयान में ये भी कहा गया है, "जयशंकर ने अफ़ग़ान क़ैदियों के मुद्दे पर तुरंत ध्यान देने का आश्वासन दिया और वीज़ा प्रक्रिया को आसान बनाने का वादा किया."
पहलगाम हमले के बाद सात मई को तड़के भारत ने पाकिस्तान में 9 जगहों पर हवाई हमले किए थे.
दोनों देशों के बीच शुरू हुई इस सैन्य झड़प के दौरान पाकिस्तान ने दावा किया था भारतीय मिसाइल हमले की जद में अफ़ग़ान का इलाक़ा भी आया था. ने इस दावे का खंडन किया.
भारत के विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने भी इस दावे को पूरी तरह बेबुनियाद बताते हुए , "अफ़ग़ान अपने असली दोस्तों और दुश्मनों के बारे में जानते हैं."
उन्होंने कहा, "अफ़ग़ान जनता को ये बताने की ज़रूरत नहीं है कि किस देश ने पिछले डेढ़ साल में कई अफ़ग़ान नागरिकों और अफ़ग़ानिस्तान में आधारभूत ढांचे को निशाना बनाया है."
तालिबान के दूसरे दौर में भारत के साथ संबंध
अगस्त, 2021 में अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता पर तालिबान के दोबारा कब्ज़े को भारत के लिए कूटनीतिक और रणनीतिक झटके के रूप में देखा गया था.
ऐसा लग रहा था कि भारत ने अफ़ग़ानिस्तान में जो अरबों डॉलर के निवेश किए हैं, उन पर पानी फिर जाएगा.
भारत ने अफ़ग़ानिस्तान में 500 से अधिक परियोजनाओं पर 3 अरब डॉलर से अधिक का निवेश किया है, जिसमें सड़कें, बिजली, बांध और अस्पताल तक शामिल हैं.
भारत ने अफ़ग़ान सैन्य अधिकारियों को प्रशिक्षित किया, हजारों छात्रों को छात्रवृत्ति दी और एक नए संसद भवन का निर्माण कराया.
हालांकि अफ़ग़ानिस्तान में भारत के पूर्व राजदूत रहे जयंत प्रसाद ने बीते जनवरी में को बताया था कि 'पिछले तीन सालों से भारत ने विदेश सेवा के एक राजनयिक के ज़रिए तालिबान के साथ संपर्क बना रखा है.'
दो साल तक भारत की राजधानी दिल्ली में अशरफ ग़नी सरकार द्वारा नियुक्त राजदूत फ़रीद मामुन्दज़ई ही अफ़ग़ान दूतावास की ज़िम्मेदारी निभाते रहे लेकिन अक्तूबर 2023 में ये कहते हुए दूतावास ने काम करना बंद कर दिया कि उसे भारत सरकार की ओर से समर्थन नहीं मिल रहा.
क़ाबुल में सत्ता परिवर्तन के बाद ही दिल्ली में अफ़ग़ान दूतावास और मुंबई, हैरदाबाद में अफ़ग़ान वाणिज्य दूतावास के बीच तल्ख़ी आ गई थी.
कहा जा रहा था कि इस दूतावास के ज़रिए तालिबान सरकार भारत से बात नहीं कर रही थी, जबकि वाणिज्य दूतावासों का तालिबान सरकार का समर्थन था. इसलिए दूतावास के कामकाज का बंद होना भारत सरकार के रुख़ में बदलाव का पहला संकेत था.
इसके बाद आठ जनवरी 2025 को भारत के विदेश सचिव विक्रम मिसरी और अफ़ग़ान विदेश मंत्री मुत्ताकी के बीच दुबई में बातचीत हुई. ये दोनों देशों के बीच की सबसे उच्चस्तरीय वार्ताएं थीं.
अफ़ग़ानिस्तान के विदेश मंत्रालय के बयान के अनुसार, इस मुलाक़ात में ईरान के चाबहार पोर्ट के ज़रिए भारत के साथ व्यापार बढ़ाने पर बात हुई.
भारत ईरान में चाबहार पोर्ट बना रहा है ताकि पाकिस्तान के कराची और ग्वादर पोर्ट को बाइपास कर अफ़ग़ानिस्तान के साथ ईरान और मध्य एशिया से कारोबार किया जा सके.
अफ़ग़ानिस्तान में तत्कालीन सोवियत संघ की सेना के ख़िलाफ़ लड़ाई में पाकिस्तान तालिबान का अहम सहयोगी रहा. लेकिन हाल के सालों में तालिबान के साथ पाकिस्तान के रिश्ते तल्ख़ हुए हैं.
तालिबान की सत्ता में दोबारा वापसी से पाकिस्तान को उम्मीद थी कि तहरीक-ए तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) पर लगाम लगेगी. टीटीपी को पाकिस्तानी तालिबान भी कहा जाता है.
टीपीपी अफ़ग़ानिस्तान से सटे पाकिस्तान के पख्तून बहुल इलाक़ों में सक्रिय है.
भारत में पाकिस्तान के पूर्व उच्चायुक्त अब्दुल बासित के अनुसार, "हाल के दिनों में पाकिस्तान में आतंकवादी हमले बढ़े हैं और पाकिस्तान सरकार टीटीपी के ख़िलाफ़ कार्रवाई कर रही है लेकिन उसकी सुरक्षित पनाहगाह अफ़ग़ानिस्तान में है."
भारत और तालिबान के बीच जनवरी 2025 की बातचीत से कुछ दिन पहले, पाकिस्तान ने पूर्वी अफ़ग़ानिस्तान में हवाई हमले किए थे. तालिबान सरकार के मुताबिक़ इन हमलों में दर्जनों लोग मारे गए थे. इससे दोनों देशों के बीच तनाव और बढ़ गया.
इसके अलावा, दोनों देशों के बीच सीमा विवाद रिश्ते को और जटिल बनाता है.
बीते कुछ महीनों से पाकिस्तान बिना वैध दस्तावेज वाले अफ़ग़ान नागरिकों को सामूहिक रूप से निकाल रहा है.
तालिबान अधिकारियों का कहना है कि आने वाले महीनों में क़रीब 20 लाख लोगों को पड़ोसी पाकिस्तान से निकाला जाना है. तोरखम बॉर्डर क्रॉसिंग से हर दिन 700 से 800 परिवार अफ़ग़ानिस्तान भेजे जा रहे हैं.
यूएनएचसीआर के मुताबिक़, पाकिस्तान में क़रीब 35 लाख अफ़ग़ान नागरिक रह रहे हैं. इनमें वो सात लाख लोग भी शामिल हैं जो 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद पाकिस्तान पलायन कर गए थे.

पाकिस्तान को अफ़ग़ानिस्तान से अलग करने वाली सीमा को डूरंड लाइन कहा जाता है. लेकिन अफ़ग़ानिस्तान इस सीमा रेखा को स्वीकार नहीं करता है.
पाकिस्तान इसे डूरंड लाइन न कह कर, अंतरराष्ट्रीय सीमा कहता है. उसका कहना है कि इस बॉर्डर को अंतरराष्ट्रीय मान्यता हासिल है.
ब्रिटिश सरकार ने तत्कालीन भारत के उत्तर-पश्चिमी हिस्सों पर नियंत्रण मज़बूत करने के लिए 1893 में अफ़ग़ानिस्तान के साथ 2640 किलोमीटर लंबी सीमा रेखा खींची थी.
ये समझौता ब्रिटिश इंडिया के तत्कालीन विदेश सचिव सर मॉर्टिमर डूरंड और अमीर अब्दुर रहमान ख़ान के बीच काबुल में हुआ था.
लेकिन अफ़ग़ानिस्तान पर जो चाहे राज करे, डूरंड लाइन पर सबकी सहमति नहीं है. कोई अफ़ग़ान इसे अंतरराष्ट्रीय सीमा नहीं मानता.
जबकि पाकिस्तान इस सीमा पर बाड़ लगाने का काम कर रहा है. 2022 में तालिबान सरकार ने दी थी और तालिबान लड़ाकों ने कई जगहों से बाड़ को उखाड़ फेंका था.
भारत और अफ़ग़ानिस्तान क्यों क़रीब आना चाहते हैं?प्रोफ़ेसर हर्ष वी पंत नई दिल्ली स्थित ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन के अध्ययन और विदेश नीति विभाग के उपाध्यक्ष हैं.
बीबीसी से उन्होंने कहा कि अफ़ग़ानिस्तान की तालिबान सरकार आर्थिक संकटों से जूझ रही है और तमाम गतिरोधों के बावजूद उसे भारत ने अफ़ग़ानिस्तान को मानवीय सहायता देना जारी रखे हुए है. पहलगाम हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच व्यापार बंद है और अफ़ग़ानिस्तान को जाने वाली मदद भी प्रभावित हुई है.
वह कहते हैं, "अफ़ग़ानिस्तान के लिए पाकिस्तान फिलहाल भारत से व्यापारिक संबंध बनाए रखने में एकमात्र रास्ता है."
वो कहते हैं, "भारत ईरान के चाबहार पोर्ट के ज़रिए मध्य एशिया में व्यापारिक संबंध बनाना चाहता है. इस पोर्ट से अफ़ग़ानिस्तान, बिना पाकिस्तान के ही भारत और बाकी दुनिया से व्यापारिक संबंध स्थापित कर सकता है."
उनके मुताबिक़, "ऐसा नहीं कि दोबारा सत्ता में आने के बाद भारत के साथ तालिबान के संबंध पूरी तरह कट गए थे. बल्कि बैक चैनल से बातचीत जारी थी. रिश्ते सुधरना दोनों देशों की ज़रूरत है और रिश्तों में आ रही गर्मज़ोशी इसी बात का संकेत है."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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