
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के संभल में पुलिस ने कई ऐसे गैंग का पर्दाफ़ाश करने का दावा किया है, जो बीमा की रक़म हड़पने के लिए कई तरह से फ़र्ज़ीवाड़े कर रहे थे.
इस साल जनवरी में शुरू हुई जाँच के दौरान अब तक 60 लोगों को गिरफ़्तार किया जा चुका है.
इस जाँच का नेतृत्व कर रहीं संभल की अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक (एएसपी) अनुकृति शर्मा के मुताबिक़ गिरफ़्तार किए गए लोगों में आशा वर्कर, बैंक से जुड़े कर्मचारी, बीमा के दावों के जाँचकर्ता और कई अन्य शामिल हैं.
पुलिस का दावा है कि बीमा की रक़म हड़पने के लिए गंभीर रूप से बीमार लोगों के बीमा करवाए गए, पहले से मर चुके लोगों को दस्तावेज़ों में ज़िंदा किया गया और हत्याएँ तक की गईं.
इन स्कैम के लिए आधार डेटा में बदलाव किया गया और लोगों को जानकारी हुए बिना उनके बैंकों में खाते खुलवाए गए.
बीबीसी ने उन सभी संस्थाओं से बात करके उनका पक्ष जानने की कोशिश की, जिन पर पुलिस ने आरोप लगाए हैं, लेकिन किसी की ओर से कोई जवाब नहीं मिला.
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इस जाँच की शुरुआत जनवरी 2025 में हुई, जब अचानक एक रोड चेज़ के दौरान पुलिस ने दो अभियुक्तों को हिरासत में लिया.
इन अभियुक्तों के मोबाइल फ़ोन और गाड़ी से मिले दस्तावेज़ों की जब गहन जाँच की गई, तो इन बीमा स्कैम की परतें खुलती चली गईं और एक के बाद एक गिरफ़्तारियाँ हुईं.
अनुकृति शर्मा कहती हैं, "हमें कई राज्यों से शिकायतें मिली हैं, हज़ारों पीड़ित हो सकते हैं और ये बीमा घोटाला आसानी से 100 करोड़ से ऊपर का हो सकता है."
गंभीर रूप से बीमार लोगों का बीमा
बुलंदशहर के भीमपुर गाँव की रहने वाले सुनीता देवी के पति सुभाष गंभीर रूप से बीमार थे, जब बीमा गैंग ने एक आशा वर्कर के ज़रिए उनसे संपर्क किया.
पुलिस का कहना है कि सुनीता के पति का बीमा करवाया गया और उनके पति की मौत के बाद बीमा गैंग ने उनके बैंक खाते में आई बीमा की रक़म निकाल ली.
संभल पुलिस के जानकारी देने से पहले सुनीता को इस बारे में पता ही नहीं था. बुलंदशहर के भीमपुर गाँव की रहने वाली सुनीता के पति की मौत जून 2024 में बीमारी से हुई थी.
सुनीता के दस्तावेज़ संभल पुलिस को गिरफ़्तार अभियुक्तों के फ़ोन से मिले थे.
एएसपी अनुकृति शर्मा कहती हैं, "हमें अभियुक्तों के फ़ोन से सैकड़ों लोगों के बीमा से जुड़े दस्तावेज़ मिले थे. जाँच के लिए हमने ऐसे मामलों को चुना, जो हमारे आसपास थे. जब पुलिस की टीम सुनीता के पास पहुँची, तब उन्हें पता ही नहीं था कि उनके पति का बीमा हुआ है और उनका कोई बैंक खाता भी है जिससे रक़म निकाल ली गई है."
सुनीता अशिक्षित हैं और उनका परिवार बेहद ग़रीब है. भीमपुर गाँव में एक पड़ोसी के मकान के एक कमरे में रह रहीं सुनीता बताती हैं, "मेरे पास पहले आशा वर्कर आई थीं. उन्होंने फ़ॉर्म भरवाया, आधार कार्ड और बाक़ी काग़ज़ लगवाए, साइन करवाए. उन्होंने मुझसे कहा था कि सरकार की तरफ़ से तुम्हें बीमा के पैसे मिल जाएँगे और पति का इलाज हो जाएगा."
सुनीता का बुलंदशहर के अनूप शहर की यस बैंक शाख़ा में खाता भी खुलवाया गया था. बीमा की रक़म इसी खाते में आई थी, जिसे सेल्फ़ चैक के माध्यम से एक अन्य महिला ने जाकर निकाल लिया था.
एएसपी अनुकृति शर्मा कहती हैं, "इस स्कैम में आशा वर्कर से लेकर बैंक के कर्मचारियों तक सब मिले थे. सुनीता कभी बैंक गईं ही नहीं और उनका केवाईसी करवाकर खाता खुलवा लिया गया. उनके बैंक जाए बिना सेल्फ़ चैक के माध्यम से पैसा निकाल लिया गया. हमने इस संबंध में यस बैंक के दो डिप्टी मैनेजरों को भी गिरफ़्तार किया है."
बीबीसी ने यस बैंक से जानना चाहा कि इस तरह की गतिविधियों को रोकने के लिए बैंक क्या कर रहा है. लेकिन बैंक की तरफ़ से कोई जवाब नहीं दिया गया.
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पुलिस के मुताबिक़ ये बीमा गैंग ऐसे लोगों की तलाश में रहते थे, जो गंभीर रूप से बीमार हों. ये गैंग उनके परिवारों को सरकारी मदद का भरोसा देकर दस्तावेज़ हासिल कर लेते हैं और फिर मौत हो जाने के बाद बीमा का पैसा निकाल लेते हैं.
ऐसा ही एक मामला संभल के ही एक गाँव की रहने वाली प्रियंका शर्मा का है. प्रियंका शर्मा के पति दिनेश शर्मा कैंसर से पीड़ित थे, जब बीमा गैंग ने उनसे संपर्क किया.
प्रियंका बताती हैं, "मैं अपने पति को लेकर अस्पताल जा रही थी, जब वे लोग मुझे मिले. उन्होंने बताया कि वो लोग सरकार की तरफ़ से गंभीर रूप से बीमार लोगों की मदद करते हैं. आपको पाँच लाख रुपए इलाज के लिए मिलेंगे और अगर पति को कुछ हो गया तो 20 लाख रुपए मिलेंगे.”
प्रियंका दावा करती हैं कि मदद करने का झांसा देने वाले उन लोगों ने एक लाख 40 हज़ार रुपए उनसे लिए और उनके सभी दस्तावेज़ भी ले लिए.
प्रियंका के पति दिनेश शर्मा की मौत मार्च 2024 में कैंसर से हो गई.
संभल में बीमा फ़र्ज़ीवाड़ों की जाँच शुरू होने के बाद प्रियंका ने भी पुलिस को शिकायत दी. हालाँकि उनके साथ फ़र्ज़ीवाड़ा करने वाले तीन में से दो अभियुक्त अभी फ़रार हैं.
पति की मौत और उसके बाद बीमा के नाम पर हुए फ़र्ज़ीवाड़े ने प्रियंका को तोड़ दिया है.
उनकी ज़मीन गिरवी पड़ी है और वो किसी तरह दूध बेचकर अपने तीन बच्चों का पेट पाल रही हैं.
पहले से मर चुके लोगों का बीमा
बीमा फ़र्ज़ीवाड़ों की जाँच के दौरान ऐसे मामले भी सामने आए, जिनमें मर चुके लोगों को दस्तावेज़ों में ज़िंदा करके बीमा करवाया गया.
ऐसा ही एक मामला दिल्ली के रहने वाले त्रिलोक का है. त्रिलोक की मौत जून 2024 में कैंसर से हो गई थी.
त्रिलोक का दिल्ली के ही निगम बोध श्मशान घाट में अंतिम संस्कार हुआ था, जिसकी पर्ची भी मौजूद है.
स्कैम गैंग ने त्रिलोक की मौत के बाद दिल्ली के एक बैंक उनका खाता खुलवाया, बीमा पॉलिसी करवाई और फिर दिल्ली के जीबी पंत अस्पताल से उनका मृत्यु प्रमाण पत्र बनवा लिया.
ये गैंग बीमा की रक़म निकाल पाता, उससे पहले ही संभल पुलिस की पकड़ में आ गया.
दिल्ली के शालीमार बाग़ इलाक़े में रहने वाली त्रिलोक की पत्नी सपना को इस फ़र्ज़ीवाड़े ने तोड़ दिया है.
सपना बुटीक चलाकर अपना परिवार पालती हैं. बीबीसी से बातचीत में सपना कहती हैं, "मेरे हसबैंड की मौत हो गई थी. उन्हें दस्तावेज़ों में ज़िंदा करके फिर से मारा गया."
सपना अपने पति को याद करके भावुक हो जाती हैं. सपना बताती हैं, "हमने हर जगह इलाज कराया, लेकिन कैंसर बढ़ता ही गया. उनकी मौत के बाद मैं बहुत टूट चुकी थी."
त्रिलोक की मौत के तीन महीने बाद बीमा गैंग ने सपना से संपर्क किया और उन्हें सरकारी मदद दिलाने का भरोसा दिया.
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सपना इस इंतज़ार में थीं कि सरकार की तरफ़ से उन्हें मदद मिलेगी. बाद में दस्तावेज़ लेने वाले गैंग से जुड़े लोगों ने उनके फ़ोन उठाने बंद कर दिए.
बीमा स्कैम की जाँच के दौरान संभल पुलिस जब सपना के पास पहुँची, तब उन्हें पता ही नहीं था कि उनके पति का मौत के बाद बीमा करवाया गया है.
सपना बताती हैं, "जब पुलिस आई, मैं बहुत डर गई थी. मैं विधवा हूँ और जब पुलिस आई, तो सबको लगा कि मैंने कुछ ग़लत किया है. फिर अनुकृति शर्मा ने मुझे फ़ोन किया बताया कि आपके साथ क्राइम हो गया है, आपकी फ़ाइल इसलिए पकड़ी गई है क्योंकि आपके हसबैंड को काग़ज़ों में जिंदा करके, दोबारा मारा गया है."
उन्होंने आगे बताया, "ये गैंग मेरे जैसे ऐसे लोगों को निशाना बना रहे हैं, जो पहले से ही परेशान हैं. अगर पुलिस मेरी स्थिति ना समझती, तो इस फ़र्ज़ीवाड़े में मैं ही अपराधी हो जाती, क्योंकि दस्तावेज़ तो मेरे ही इस्तेमाल किए गए हैं."
अनुकृति शर्मा कहती हैं, "बीमा का पैसा निकालने के लिए मृत्यु प्रमाण पत्र ज़रूरी होता है. त्रिलोक के मामले में दिल्ली के जीबी पंत अस्पताल से मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाया गया."
जीबी पंत अस्पताल ने संभल पुलिस को दिए जवाब में इस मृत्यु प्रमाण पत्र को फ़र्ज़ी बताया था. हालाँकि संभल पुलिस ने इस जाँच के दौरान जीबी पंत अस्पताल से जुड़े एक सुरक्षा गार्ड और वॉर्ड ब्वॉय को भी गिरफ़्तार किया है. पुलिस का दावा है इन्होंने ही अस्पताल के दस्तावेज़ों का इस्तेमाल कर ये पत्र बनवाया था.
बीबीसी ने इस संबंध में जीबी पंत अस्पताल से पक्ष जानना चाहा, लेकिन अस्पताल ने कोई जवाब नहीं दिया.
त्रिलोक की एक बीमा पॉलिसी के 20 लाख रुपए बैंक खाते में आ गए थे. लेकिन इससे पहले की गैंग के सदस्य इस पैसे को निकाल पाते, संभल पुलिस ने उन्हें गिरफ़्तार कर लिया.
बीमा की रक़म के लिए हुई 'हत्याएँ'
बीमा रक़म के लिए ये फ़र्ज़ीवाड़ा सिर्फ़ गंभीर रूप से बीमार लोगों या मर चुके लोगों तक ही नहीं रुका, बल्कि पुलिस का दावा है कि बीमा की रक़म हड़पने के लिए हत्याएँ तक हुईं.
एएसपी अनुकृति शर्मा दावा करती हैं कि जाँच के दौरान संभल पुलिस के सामने हत्या के ऐसे कम से कम चार मामले सामने आए, जिन्हें हादसे में हुई मौत बताया गया था.
इन चार लोगों में से एक थे 20 साल के अमन. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अमरोहा और संभल ज़िले की सीमा से गुज़रती सड़क पर रहला थाने से क़रीब पाँच किलोमीटर दूर एक सुनसान स्थान पर 20 साल के अमन की नवंबर 2023 में हादसे में मौत दिखाकर बीमा की रकम वसूल ली गई थी.
बाद में पुलिस जाँच में ये दावा किया गया कि अमन की बीमा फ्रॉड करने वाले गैंग ने हत्या की थी.
अनुकृति शर्मा कहती हैं, "अमन की भी कई पॉलिसी के दस्तावेज़ हमें अभियुक्तों से मिले थे. जब उसकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट देखी, तब उसके पीएम में पूरे शरीर पर कोई खरोंच नहीं थी सिर्फ सर में चार चोटें थीं."
अनुकृति शर्मा कहती हैं, “जब हमने उस गैंग के सात लोग पकड़े, तब उनमें से एक के मुँह से निकला कि हम रहरा में ही जाकर हत्याएँ करते हैं. उन्हें और कुरेदा, तो उन्होंने सलीम नाम के लड़के की हत्या भी स्वीकार की. ये भी बिल्कुल ऐसे ही की गई थी. इस मामले में इनके पास बीमा के 78 लाख रुपए आ गए थे."
अमन का आधार कार्ड दिल्ली के छतरपुर इलाक़े के भाटी ख़ुर्द गाँव का बनवाया गया था. हालाँकि स्थानीय लोगों के मुताबिक़ अमन कभी यहाँ नहीं रहे.
संभल पुलिस ने बीमा फ़र्ज़ीवाड़े की इस जाँच के दौरान कई अलग-अलग मुक़दमे दर्ज किए हैं और अब तक क़रीब 60 लोगों को गिरफ़्तार किया है.
आधार डेटा में किया बदलावजाँच में ये भी पता चला कि स्कैम करने के लिए आधार डेटा में बदलाव किए गए और फ़र्ज़ी उम्र-पते दर्ज करवाए गए.
एएसपी अनुकृति शर्मा कहती हैं, "यूआईडीएआई ने बहुत से सेफ़गार्ड बनाए हैं, जिन्हें बाईपास करना आसान नहीं. लेकिन बीमा करने वाले गैंग का नेटवर्क इतना जटिल था कि इन्होंने हर उस सेफ़गार्ड को बाईपास किया जो बनाया गया है."
बीबीसी ने आधार डेटा में किए गए बदलावों को लेकर यूआईडीएआई यानी भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण से जानना चाहा कि ऐसे फ़र्ज़ीवाड़ों को रोकने के लिए क्या प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन कोई जवाब नहीं मिल सका.
इस जाँच की शुरुआत बीमा दावों के जाँचकर्ता ओंकारेश्वर मिश्रा की गिरफ़्तारी से हुई थी. वो अभी जेल में है. ओंकारेश्वर के वकील नीरज तिवारी ने बीबीसी से कहा कि वो बेग़ुनाह हैं और उन्हें जल्द ही ज़मानत मिल जाएगी.
बीमा स्कैम से जुड़े कई अभियुक्तों का संबंध संभल ज़िले के एक छोटे से क़स्बे बबराला से है.
अभियुक्त सचिन शर्मा और गौरव शर्मा के बबराला स्थित घरों पर ताला लगा है. उनके कई पड़ोसी नाम ना ज़ाहिर करते हुए बताते हैं कि लगभग एक दशक पहले उनके पिता साइकिल टायर पंचर की दुकान चलाते थे.
सचिन शर्मा और गौरव शर्मा के परिवार के ग्रेटर नोएडा में भी कई मकान हैं. उनका पक्ष जानने के लिए हमने ग्रेटर नोएडा में रह रहे इनके परिजनों से मुलाक़ात की, लेकिन कोई जवाब नहीं मिल सका.
संभल में सामने आए इस बीमा स्कैम की जाँच जैसे-जैसे आगे बढ़ रही है, कई और परतें खुल रही हैं. पुलिस का कहना है कि ये कई राज्यों में फैला हो सकता है.
एएसपी अनुकृति शर्मा कहती हैं, "हमारे पास जो शिकायतें हैं और जो जानकारियाँ हैं, वो कई राज्यों से हैं. ये बहुत जटिल स्कैम है, जिसमें कई सेक्टर के लोग जुड़े हैं. हमने आशा वर्कर, ग्राम प्रधान से लेकर बैंक, इंश्यूरेंस कंपनी के एजेंट, आधार पीओसी सेंटर से जुड़े लोग, अस्पताल से जुड़े लोग और कई अन्य सेक्टर से जुड़े लोगों को गिरफ़्तार किया है. आप ये कह सकते हैं कि एक अर्थव्यवस्था में जितने प्लेयर्स होते हैं, एक फ्राड इकोनॉमी में भी उस तरह के भ्रष्ट लोग शामिल हैं."
बीमा की रकम हासिल करने के लिए सबसे अहम दस्तावेज़ मृत्यु प्रमाण पत्र होता है.
अधिवक्ता प्रवीण पाठक ने ये स्कैम सामने आने के बाद दिल्ली हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने में पारदर्शिता लाने की मांग की है.
प्रवीण पाठक कहते हैं, "कम से कम एक सिस्टम होना चाहिए, आटोमेटेड डिज़ीटाइज़्ड, जहाँ पता लग सके कि किसकी मृत्यु हुई और उसके आधार पर वेरिफ़िकेशन हो जाए, ताकि ये पुष्टि की जा सके कि मौत हुई है और कब हुई है. अगर इस सिस्टम को सुधार दिया गया, तो ऐसी घटनाओं को रोका जा सकेगा."
केवाईसी दस्तावेज़ों का ग़लत इस्तेमालइस बड़े पैमाने पर बीमा फ़र्ज़ीवाड़े के सामने आने के बाद से बीमा कंपनियाँ भी चिंतित हैं.
एसबीआई लाइफ़ के सीओओ रजनीश मधुकर कहते हैं कि कंपनी बीमा धारक को तकलीफ़ दिए बिना दावे को प्रोसेस करती हैं, इसी का फ़ायदा फ़र्ज़ीवाड़ा करने वाले उठाते हैं.
रजनीश मधुकर कहते हैं, "बीमा दावों का भुगतान करते वक़्त ये ध्यान रखा जाता है कि दावा करने वालों को कई तक़लीफ़ ना हो क्योंकि किसी की मौत के बाद परिवार पहले से ही बहुत परेशान होते हैं. इसी बीच ये लोग (स्कैमर) चले आते हैं, जो फ़र्ज़ीवाड़ा करते हैं."

इस फ़र्ज़ीवाड़े की जड़ में केवाईसी यानी पहचान से जुड़े दस्तावेज़ों का ग़लत इस्तेमाल है.
एएसपी अनुकृति शर्मा कहती हैं, "सबसे बड़ी चुनौती ये है कि ये फ़र्ज़ीवाड़ा करने के लिए लोगों के दस्तावेज़ों का ग़लत इस्तेमाल किया जाता है. ऐसे में कहीं ना कहीं फ़र्ज़ीवाड़े की जाँच के दायरे में वो लोग भी आ जाते हैं, जो असल में पीड़ित हैं. सबसे बड़ी चुनौती यही है कि ऐसे लोगों की सुरक्षा की जाए."
इंश्योरेंस रिस्क मैनेजमेंट एसोसिएशन से जुड़े डॉ. रमेश खरे कहते हैं, "जब फ़र्ज़ीवाड़े पकड़े जाते हैं, तब जिनका आधार कार्ड पैन कार्ड इस्तेमाल किया गया होता है, वही लोग समस्या में आ जाते हैं. ये सुनिश्चित किया जाए कि केवाईसी का ग़लत इस्तेमाल ना हो."
बढ़ रहा है बीमा फ़र्ज़ीवाड़ा- आईआरडीएआईभारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण यानी आईआरडीए ने बीमा क्षेत्र में फ़र्ज़ीवाड़े को रोकने के लिए साल 2024 में दिशानिर्देश जारी किए थे, जिनके तहत किसी भी फ़र्ज़ीवाड़े के बारे में पता चलने पर उसकी जाँच अनिवार्य है.
बीमा फ्रॉड का पैमाना कितना बड़ा है, इसका कोई अधिकारिक आँकड़ा नहीं है. हालाँकि अनुमानों के मुताबिक़ ये हज़ारों करोड़ में हो सकता है.
संभल में इंश्योरेंस कॉन्कलेव में बोलते हुए आईआरडीएआई की कार्यकारी निदेशक मीना कुमारी ने यह स्वीकार किया है कि बीमा फ्रॉड लगातार बढ़ रहे हैं.
मीना कुमारी ने कहा, "कई बार लोग कहते हैं कि फ्रॉड होने से अधिकतम क्या होगा, बीमा के क्लेम बढ़ जाएँगे. ऐसे में, जब भी संभव होता है, अगले साल नए पॉलिसी धारकों को इसकी क़ीमत चुकानी पड़ती है क्योंकि दावे बढ़ने की वजह से बीमा का प्रीमियम बढ़ जाता है."
मीना कुमारी ने बताया कि ऐसे में इसका असर सीधे तौर पर उन ग्राहकों पर पड़ता है, जो बीमा कंपनियों के पास पॉलिसी ख़रीदने आते हैं.
इस बीमा फ्रॉड का दायरा कितना बड़ा है, इस सवाल पर अनुकृति शर्मा कहती हैं, "हम पाँच महीनों से जाँच कर रहे हैं. 60 के क़रीब लोग गिरफ़्तार किए हैं, हज़ारों फ़र्ज़ी पॉलिसी सामने आई हैं. मुझे लगता है कि हम शायद अभी 10 प्रतिशत ही काम कर पाए हैं. ऐसे फ्रॉड रोकने के लिए अभी बहुत काम किया जाना बाक़ी है."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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