अमेरिका ने भारत पर अब तक 50 फ़ीसदी टैरिफ़ लगाने की घोषणा कर दी है.
भारत पर नए टैरिफ़ 27 अगस्त से लागू होंगे.
25 फ़ीसदी अतिरिक्त टैरिफ़ लगाने के पीछे ट्रंप ने दलील दी है कि भारत रूस से तेल ख़रीद कर यूक्रेन की जंग को बढ़ावा दे रहा है.
हालांकि, भारत ने ट्रंप के इस फ़ैसले को बेबुनियाद बताया है और यह भी कहा है कि कई यूरोपीय देशों समेत अमेरिका भी रूस से व्यापार कर रहा है.
ट्रंप के हस्ताक्षर वाले कार्यकारी आदेश के मुताबिक़, यह अतिरिक्त टैरिफ़ आदेश जारी होने की तारीख़ से 21 दिन बाद लागू किया जाएगा.
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भारत के विदेश मंत्रालय ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, "यह कार्रवाई अनुचित, अकारण और तर्कहीन है."
बुधवार को व्हाइट हाउस की ओर से जारी आदेश में कहा गया, "भारत सरकार इस समय सीधे या परोक्ष रूप से रूसी तेल का आयात कर रही है."

टैरिफ़ एक टैक्स होता है, जो विदेशों से लाए गए सामान पर लगाया जाता है. यह मूल रूप से उस सामान की क़ीमत का कुछ प्रतिशत होता है.
10 फ़ीसदी टैरिफ़ का मतलब है कि अगर किसी सामान की क़ीमत सौ रुपये है तो उस पर 10 रुपये का टैक्स लगेगा. यानी टैरिफ़ लगने के बाद उस सामान की क़ीमत 110 रुपए हो जाएगी.
टैरिफ़ निर्यात करने वाले की बजाय उत्पादों को आयात करने वाली फ़र्म पर लगाए जाते हैं.
मसलन, अगर कोई फ़र्म ऐसी कार आयात कर रही है, जिसकी कीमत 50 हज़ार डॉलर प्रति कार है और उस पर 25 फ़ीसदी टैरिफ़ लगेगा, तो फ़र्म को हर कार पर 12,500 डॉलर का टैक्स देना होगा.
अमेरिका में जो कंपनियां अन्य देशों से सामान मंगाती हैं, उन्हें टैरिफ़ रेट के मुताबिक़ सरकार को टैक्स देना होता है.
इसका मतलब है कि कंपनी टैक्स का पूरा भार या इसका कुछ हिस्सा अपने ग्राहकों से वसूल सकती है.
अगर आयात करने वाली अमेरिकी फ़र्म टैरिफ़ की लागत सामान की क़ीमत बढ़ाकर पूरी करती है तो इसका आर्थिक बोझ पूरी तरह अमेरिकी उपभोक्ताओं पर पड़ेगा.
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जब सामान महंगा होगा तो इसकी मांग कम हो सकती है. यानी जितना ज़्यादा टैरिफ़ होगा, सामान की क़ीमत उतनी ज़्यादा बढ़ सकती है.
ऐसे में अमेरिकी उपभोक्ताओं के बीच महंगे सामान की मांग उतनी ही कम होगी और अमेरिकी कंपनियां कम सामान का आयात करेंगी.
ऐसे में अमेरिकी कंपनियां और उपभोक्ता उन देशों और बाज़ारों की तरफ़ रुख़ करेंगी, जहाँ का सामान सस्ता होगा.
मई के महीने में अमेरिकी ट्रेड कोर्ट ने कहा था कि ट्रंप के पास इनमें से कई तरह के टैरिफ़ लगाने का अधिकार ही नहीं था क्योंकि उन्होंने राष्ट्रीय आपातकालीन शक्तियों के अधीन ऐसा किया था.
हालांकि अगले दिन एक अपील कोर्ट ने कहा कि जब तक केस पर अंतिम फ़ैसला नहीं हो जाता है, तब तक जो उचित टैक्स हैं, वो लागू रह सकते हैं.
टैरिफ़ क्यों?ट्रंप का कहना है कि टैरिफ़ लगाने से अमेरिकी उपभोक्ता ज़्यादा अमेरिकी सामान ख़रीदेंगे.
उनके मुताबिक़ सामान आयात करने पर टैक्स लगाने से टैक्स की वसूली बढ़ेगी और इससे अमेरिका में ही निवेश कर सामान बनाने पर ज़ोर होगा.
डोनाल्ड ट्रंप ने अक्सर कहा है कि टैरिफ़ घरेलू स्तर पर रोज़गार पैदा करते हैं और उनकी रक्षा करते हैं.
ट्रंप टैरिफ़ को अमेरिकी अर्थव्यवस्था के साथ ही टैक्स रेवेन्यू को भी बढ़ाने के तरीक़े के रूप में देखते हैं.
ट्रंप दुनिया के अन्य देशों से ख़रीदे जाने वाला सामान और अमेरिका दुनिया के अन्य देशों को जो सामान बेचता है, उसके अंतर को कम करना चाहते हैं.
इसे ट्रेड डेफिसिट या व्यापार घाटा कहते हैं. ट्रंप का कहना है कि 'धोखेबाज़ों' ने अमेरिका का फ़ायदा उठाया है.
ट्रंप ने अलग-अलग देशों से होने वाले आयात और ख़ास सामान पर अलग-अलग टैरिफ़ की घोषणा की है.
साल 2024 में जब डोनाल्ड ट्रंप अपना चुनावी अभियान चला रहे थे तब उन्होंने एक मौके पर कहा था, "मेरी योजना के तहत अमेरिकी कर्मचारी अब अपने ही देश में विदेशियों के हाथों नौकरी खोने के बारे में चिंतित नहीं होंगे. बल्कि विदेशी लोग अमेरिका में अपनी नौकरी गंवाने के बारे में चिंतित होंगे."
बीबीसी के इकनॉमिक एडिटर फ़ैसल इस्लाम का कहना है कि ट्रंप वैश्विक आर्थिक नक्शे को मूल रूप से बदलना चाहते हैं. साथ ही वह अमेरिका के साथ चीन और यूरोप के ट्रेड सरप्लस को कम करना चाहते हैं, जिसे वह 'अमेरिका को लूटने' के रूप में देखते हैं.
ट्रंप ने ये भी कहा है कि उन्होंने साल 2018 में राष्ट्रपति के तौर पर जैसे स्टील और एल्यूमीनियम पर टैरिफ़ शुरू किए थे, वे अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा करते हैं क्योंकि ये 'रक्षा-औद्योगिक क्षेत्र की बुनियाद है.'

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बुधवार को व्हाइट हाउस में हुई प्रेस कॉन्फ़्रेंस में जब ट्रंप से बीबीसी संवाददाता एंथनी ज़र्चर ने सवाल किया कि 'चीन सहित कई देश रूस से तेल ख़रीद रहे हैं, तो भारत को ही क्यों निशाना बनाया जा रहा है?'
इस पर ट्रंप ने कहा, "अभी तो सिर्फ 8 घंटे ही हुए हैं. देखते हैं आगे क्या होता है. आपको और भी बहुत कुछ देखने को मिलेगा. कई अतिरिक्त प्रतिबंध भी देखने को मिल सकते हैं."
ट्रंप से जब फिर सवाल किया गया कि 'क्या अमेरिका की चीन पर भी अतिरिक्त टैरिफ़ लगाने की कोई योजना है?'
इस पर उन्होंने कहा, "ऐसा हो सकता है. यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम आगे क्या क़दम उठाते हैं."
हाल ही में डोनाल्ड ट्रंप ने ट्रेड डील के लिए दी गई एक अगस्त की समय सीमा समाप्त होने के बाद 90 से ज़्यादा देशों पर नए टैरिफ़ लगाने की घोषणा की थी.
ट्रंप ने जिन देशों पर हाई टैरिफ़ लगाया है, उनमें ब्रिक्स के देश भी शामिल हैं. नई सूची के मुताबिक़, ट्रंप ने ब्राज़ील पर 50 फ़ीसदी टैरिफ़ लगाया है.
इसके अलावा दक्षिण अफ़्रीका और चीन पर 30 फ़ीसदी टैरिफ़ लगाया गया है.
- 50 फ़ीसदी टैरिफ़ स्टील और एल्यूमिनियम के उत्पादों के आयात पर
- 50 फ़ीसदी टैरिफ़ तांबे के आयात पर, ये 1 अगस्त से लागू
- 25 फ़ीसदी टैरिफ़ विदेश में बनी कार, आयातित इंजन और कार के अन्य कलपुर्जों पर
आठ जुलाई को ही ट्रंप ने ये धमकी दी थी कि फ़ार्मास्यूटिकल सामान के आयात पर 200 फ़ीसदी टैरिफ़ लगाएंगे लेकिन अभी तक इस पर और कोई जानकारी नहीं है.
ट्रंप ने ये भी कहा था कि क़रीब 800 डॉलर या उससे कम के उत्पादों पर मिली टैरिफ़ से छूट भी 29 अगस्त से ख़त्म हो जाएगी.
किस देश पर लगाया कितना टैरिफ़?
ट्रंप की ओर से अलग-अलग दरों से घोषित टैरिफ़ अब कई देशों पर लागू हो गए हैं.
इनमें से अधिकांश की घोषणा इसी साल 2 अप्रैल से हुई, जब ट्रंप ने कहा था कि 10 फ़ीसदी 'बेसलाइन टैरिफ़' सारे देशों से होने वाले सभी आयातों पर लागू होगा.
जो टैरिफ़ अब लागू हैं, वे इस तरह हैं:
- 50% टैरिफ़ ब्राज़ील के उत्पादों पर
- 30% टैरिफ़ दक्षिण अफ़्रीकी उत्पादों पर
- 20% टैरिफ़ वियतनाम के उत्पादों पर
- 19% टैरिफ़ फ़िलिपींस के सामान पर
- 15% टैरिफ़ जापानी सामान पर
- 15% टैरिफ़ दक्षिण कोरियाई उत्पादों पर
ट्रंप ने रूस से तेल ख़रीदने के लिए भारत पर 25 फ़ीसदी अतिरिक्त टैरिफ़ लगाने का एलान किया था. इसकी वजह से भारतीय उत्पादों पर लगा टैरिफ़ 27 अगस्त से बढ़कर 50% हो जाएगा.
यूरोपियन यूनियन उनमें से है, जिसने ट्रंप की ओर से बातचीत के लिए दिए गए समय में ही एक डील पर सहमति बना ली. जुलाई के आख़िरी सप्ताह में दोनों पक्षों के बीच ये रज़ामंदी हुई कि यूरोपियन यूनियन के कार समेत अन्य उत्पादों पर 15% टैरिफ़ लगेगा. इस डील के तहत यूरोपियन संघ में शामिल देश कुछ उत्पादों के लिए अमेरिकी कंपनियों से ज़ीरो ड्यूटी चार्ज करेंगे.
अभी तक यूके ही ऐसा देश है जिसने अमेरिका की ओर से सबसे कम 10 फ़ीसदी टैरिफ़ लगाने पर सहमति बना ली है.
वैश्विक अर्थव्यवस्था पर टैरिफ़ का क्या असर?ट्रंप की घोषणाओं से वैश्विक शेयर बाज़ारों में अस्थिरता आई है, जहां कंपनियां अपने कारोबार के शेयर बेच रही हैं. हालांकि, बीते कुछ दिनों में बाज़ार थोड़े स्थिर रहे हैं.
शेयर बाज़ार में उतार-चढ़ाव से कई लोगों पर असर भी पड़ा, भले ही उन्हें सीधे किसी शेयर में निवेश न किया हो. क्योंकि इससे पेंशन, नौकरियां और ब्याज़ दरों पर असर पड़ा.
अमेरिकी डॉलर की कीमत आमतौर पर स्थिर रहती है लेकिन एक समय पर इसमें भी बड़ी गिरावट देखी गई.
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) और बेहद प्रभावशाली माने जाने वाले ऑर्गनाइज़ेशन फॉर इकोनॉमिक को-ऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (ओईसीडी), दोनों ने ही टैरिफ़ के परिणामस्वरूप वैश्विक आर्थिक विकास दर के घटने का पूर्वानुमान दिया.
दोनों संस्थाओं ने ये भी आशंका जताई की सबसे बुरा असर अमेरिका की अर्थव्यवस्था को झेलना पड़ेगा.
ताज़ा आंकड़े ये दिखाते हैं कि अप्रैल से जून 2025 के बीच अमेरिका की अर्थव्यवस्था 3% की सालाना दर से बढ़ी.
क्या अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए बढ़ रही है महंगाई?
विश्लेषक कहते हैं कि अमेरिका की महंगाई दर में टैरिफ़ का प्रभाव दिखने लगा है. अमेरिका में महंगाई 2.4% से बढ़कर 2.7% तक पहुंच गई है. कपड़े, कॉफ़ी, खिलौनों और इलेक्ट्रिक अप्लायंसेज़ के दामों में बढ़ोतरी हुई है.
जानी-मानी कंपनी ऐडिडास ने ये पुष्टि की थी कि वह टैरिफ़ की वजह से अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए कीमतों में इज़ाफ़ा करेगी. कंपनी के आधे से ज़्यादा उत्पाद वियतनाम और इंडोनेशिया में बनते हैं, जिन पर क्रमशः 20 और 19 फ़ीसदी टैरिफ़ लगाया गया है.
नाइकी ने भी कहा है कि अमेरिका में उसके उत्पादों की कीमतें बढ़ेंगी. इस कंपनी ने ये भी चेतावनी दी है कि टैरिफ़ की वजह से उसकी लागत में एक अरब डॉलर की बढ़ोतरी हो सकती है.
कुछ कंपनियां कम मात्रा में विदेशी सामान आयात कर रही हैं, इससे उपलब्ध सामान की कीमत में बढ़ोतरी हो रही है.
ऐसे अमेरिकी उत्पादों की कीमत भी बढ़ने की उम्मीद है जिन्हें बनाने के लिए विदेशों से सामान मंगाया जाता है.
उदाहरण के लिए एक कार पूरी तरह से असेंबल होने से पहले उसके कई पार्ट्स कई दफ़ा अमेरिका, मेक्सिको और कनाडा की सीमा को पार करते हैं.
नए टैरिफ़ से अमेरिकी सीमा पर कस्टम चेक में भी सख्ती बढ़ेगी, जिससे उत्पादों के सीमा पार करने में देरी स्वाभाविक हो जाएगी.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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