ट्रांस महिला और क्रिकेटर अनाया बांगर ने मांग की है कि बीसीसीआई और आईसीसी ट्रांस क्रिकेटरों को लेकर अपनी नीतियों पर फिर से विचार करें. इसके लिए अनाया ने अपनी मेडिकल रिपोर्ट और एक साइंटिफ़िक स्टडी का हवाला दिया है.
बीसीसीआई ने ट्रांस महिलाओं के लिए अब तक कोई विशेष नीति नहीं बनाई है. जबकि 2024 में आईसीसी ने और हाल ही में इंग्लैंड क्रिकेट बोर्ड ने ट्रांस महिलाओं के महिला क्रिकेट में खेलने पर लगभग प्रतिबंध लगा दिया है.
अनाया का तर्क है कि ये नियम मानवाधिकारों के ख़िलाफ़ हैं और इनका नकारात्मक असर ट्रांस एथलीटों के करियर और मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ रहा है.
पूर्व भारतीय क्रिकेटर संजय बांगर की बेटी अनाया ने हाल ही में बीबीसी से बातचीत मेंट्रांस महिला बनने के अपने सफर की कहानी साझा की थी.
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मैनचेस्टर मेट्रोपॉलिटन यूनिवर्सिटी की शोधकर्ता ब्लेयर हैमिल्टन अनाया की इस पूरी यात्रा की गवाह रही हैं. उन्होंने कई शारीरिक मापदंडों के आधार पर इस दौरान शरीर में आए बदलावों को दर्ज किया है.
अनाया ने अब जनवरी 2025 से मार्च 2025 तक के शारीरिक बदलावों पर आधारित एक साइंटिफ़िक रिपोर्ट जारी की है.
इस रिपोर्ट के मुताबिक़, अनाया की ताकत, हीमोग्लोबिन और ग्लूकोज़ का स्तर, शारीरिक प्रदर्शन, ये सभी सिसजेंडर महिला एथलीटों के बराबर या उससे कम हैं.
आईसीसी और बीसीसीआई ने अभी तक इस रिपोर्ट पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है. लेकिन अनाया का कहना है कि उन्होंने दोनों क्रिकेट बोर्ड को पत्र भेजा है और वह इस मुद्दे पर बातचीत के लिए तैयार हैं.
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पिछले कुछ समय से क्रिकेट में यह मुद्दा चर्चा में रहा है कि क्या ट्रांस महिलाओं को महिला खिलाड़ियों के साथ खेलने की अनुमति दी जानी चाहिए.
सितंबर 2023 में कनाडा की डेनियल मैकगे, अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेलने वाली पहली ट्रांस महिला बनीं. कुछ लोगों ने इस कदम का स्वागत किया, जबकि कई लोगों ने इसकी आलोचना की.

इसके बाद नवंबर 2023 में इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल (आईसीसी) ने ट्रांस महिलाओं के लिए नए नियम लागू किए.
नए नियमों के अनुसार, कोई ट्रांस महिला अंतरराष्ट्रीय महिला क्रिकेट में केवल तभी खेल सकेगी, जब उसने प्यूबर्टी (किशोरावस्था) से पहले जेंडर चेंज सर्जरी कराई हो.
आईसीसी ने कहा था कि यह फै़सला नौ महीने के विचार-विमर्श के बाद लिया गया.
आईसीसी के प्रतिबंध के बावजूद, इंग्लैंड क्रिकेट बोर्ड जैसे कुछ संगठनों ने ट्रांस महिलाओं को घरेलू स्तर पर खेलने की अनुमति दी. हालांकि, मई 2025 में इंग्लैंड क्रिकेट बोर्ड ने अपनी नीतियों में बदलाव किया.
ट्रांस महिलाएं मिक्स्ड और ओपन क्रिकेट प्रतियोगिताओं में भाग ले सकती हैं, लेकिन ऐसी प्रतियोगिताएं बहुत कम आयोजित होती हैं. इसलिए इस फै़सले को ट्रांस महिलाओं के क्रिकेट में खेलने पर अप्रत्यक्ष प्रतिबंध के रूप में भी देखा जा रहा है.
दुनियाभर में बहुत कम स्थानों पर ट्रांसजेंडर लोगों को किशोरावस्था के दौरान यानी 18 साल से पहले सेक्स रीअसाइनमेंट सर्जरी या हॉर्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी का विकल्प मिलता है.
वर्ल्ड प्रोफे़शनल एसोसिएशन के मुताबिक़ ट्रांसजेंडर लोगों के स्वास्थ्य के लिए हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी (एचआरटी) की शुरुआत 14 साल की उम्र में की जा सकती है. जबकि कुछ लिंग परिवर्तन सर्जरी 15 या 17 साल की उम्र में संभव हैं. हालांकि, 18 साल से कम उम्र होने पर इसके लिए माता-पिता की अनुमति आवश्यक होती है, जो अक्सर बेहद मुश्किल होता है.
बीबीसी को दिए इंटरव्यू में अनाया ने कहा, "ऐसी मुश्किलों के कारण भारत जैसे देश में 18 वर्ष से कम उम्र में एचआरटी कराना संभव नहीं होता. इसका कोई समाधान निकाला जाना चाहिए. मेरे जैसे कई लोग हैं, और हो सकता है कि कुछ अन्य क्रिकेटर अपना लिंग छिपाकर खेल रहे हों."
ट्रांस महिलाओं को महिला खेलों में हिस्सा लेने की अनुमति न देने के पीछे मुख्य तर्क यह है कि किशोरावस्था के दौरान ट्रांस महिलाओं का शरीर पुरुषों के शरीर जैसा विकसित होता है. इसलिए उन्हें महिलाओं के साथ खेलने देना अनुचित माना जाता है, क्योंकि उनकी शारीरिक शक्ति अधिक होती है.
लेकिन ट्रांसजेंडर अधिकारों से जुड़े कार्यकर्ताओं का कहना है कि ऐसा सामान्यीकरण ग़लत है, क्योंकि इसके उलट हॉर्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी ट्रांस महिलाओं के शरीर को कई बार नुक़सान भी पहुंचाती है.
अनाया बांगर ने अब अपने ख़ुद के साक्ष्य पेश करने का दावा किया है.

अनाया कहती हैं, "कोई खिलाड़ी खेलने के लिए फ़िट है या नहीं, इसका फ़ैसला वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर होना चाहिए न कि कुछ पुरानी मान्यताओं के आधार पर."
अनाया ने इस विषय पर अधिक वैज्ञानिक तर्कों पर बहस के लिए एक शोध में भाग लेने का फ़ैसला किया.
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डॉ. ब्लेयर हैमिल्टन मैनचेस्टर मेट्रोपॉलिटन यूनिवर्सिटी में शोधकर्ता हैं और ट्रांसजेंडर लोगों के स्वास्थ्य और खेलों में उनके प्रदर्शन पर शोध कर रहे हैं.
अनाया उस समय ब्रिटेन में थीं जब उन्होंने एक महिला के रूप में अपनी पहचान पाने के लिए हॉर्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी शुरू की.
एक साल तक इस प्रक्रिया से गुज़रने के बाद उन्होंने डॉ. हैमिल्टन की देखरेख में कई मेडिकल और मनोवैज्ञानिक परीक्षण कराए.
अनाया कहती हैं, "इस रिपोर्ट में विस्तार से बताया गया है कि ट्रांस महिला बनने की प्रक्रिया ने मेरे शरीर को किस तरह और किस हद तक प्रभावित किया है. इसमें कोई राय या अटकलें नहीं हैं, बल्कि आंकड़े और विस्तृत जानकारी दी गई है."
अनाया की रिपोर्ट के मुताबिक़,
- उनका हीमोग्लोबिन स्तर, ग्लूकोज़ स्तर और ताक़त सिसजेंडर (जन्म से) महिला एथलीटों के सामान्य स्तर पर या उससे कम है.
- हॉर्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी के बाद उनकी सहनशक्ति और मांसपेशियों की ताक़त में काफ़ी कमी आई है और अब वो आमतौर पर सिसजेंडर महिलाओं में पाए जाने वाले स्तर पर है.
अनाया ने साफ़ किया है कि इस रिपोर्ट का कोई राजनीतिक उद्देश्य नहीं है, बल्कि उनका मकसद ये है कि खेल में समानता और समावेश की चर्चा वैज्ञानिक आधार पर होनी चाहिए.

आईसीसी के मौजूदा अध्यक्ष जय शाह ने बीसीसीआई के सचिव रहते हुए क्रिकेट में लैंगिक समानता की बात की थी, पुरुष और महिला खिलाड़ियों के लिए समान मैच फ़ीस नीति को लागू किया था.
हालांकि, बीसीसीआई ने अब तक एलजीबीटीक्यू+ समुदाय के लिए किसी विशेष नीति की घोषणा नहीं की है.
ट्रांस महिलाओं को महिला क्रिकेट में खेलने की अनुमति दी जानी चाहिए या नहीं, इस पर बीसीसीआई ने अब तक कोई स्पष्ट रुख़ नहीं अपनाया है.
लेकिन समय बदल रहा है और एलजीबीटीक्यू+ समुदाय के साथ काम करने वालों का मानना है कि बीसीसीआई को इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए.
अनाया ने भी इसी दिशा में सुझाव दिया है और बीसीसीआई से औपचारिक अनुरोध किया है.
उन्होंने कहा, "एक ऐसे संगठन के रूप में जिसका भारत और दुनिया भर में क्रिकेट के भविष्य पर बड़ा प्रभाव है, मैं बीसीसीआई से कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर विचार करने का अनुरोध करती हूं."
उनका कहना है कि बीसीसीआई को इन बातों पर विचार करना चाहिए:
- चिकित्सा विज्ञान, प्रदर्शन मानकों और नैतिक समानता के आधार पर महिला क्रिकेट में ट्रांस महिलाओं की भागीदारी पर चर्चा शुरू की जानी चाहिए.
- योग्यता के मानदंड हीमोग्लोबिन स्तर, टेस्टोस्टेरोन में गिरावट की प्रक्रिया और खेल विशेष के प्रदर्शन परीक्षण के आधार पर तय किए जाने चाहिए.
- इन नीतियों को विशेषज्ञों, खिलाड़ियों और क़ानूनी सलाहकारों के सहयोग से तैयार किया जाना चाहिए, ताकि वे समावेशी भी हों और प्रतिस्पर्धात्मक भी.
अनाया ने कहा, "मैं किसी की सहानुभूति पाने के लिए यह रिपोर्ट और अपनी कहानी सार्वजनिक नहीं कर रही हूं. मैं इसे सच्चाई के लिए कर रही हूं. क्योंकि समावेशी होने का मतलब समानता की अनदेखी करना नहीं है. इसका मतलब है प्रदर्शन को पारदर्शी तौर पर और ज़िम्मेदारी से आंकना."
बीसीसीआई से प्रतिक्रिया मिलने पर इस ख़बर को अपडेट किया जाएगा.
ओलंपिक और दूसरे खेलों में क्या हैं नियमअलग-अलग खेलों में इस बारे में अलग-अलग नियम हैं कि ट्रांस महिलाओं को महिलाओं के खेलों में खेलने की अनुमति दी जानी चाहिए या नहीं. ज़्यादातर स्थानों पर अब भी ट्रांस महिलाओं की महिला एथलीट के रूप में भागीदारी को लेकर विरोध देखा जाता है.
अमेरिका में जनवरी 2025 में पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक अध्यादेश पर हस्ताक्षर किए, जिसके तहत ट्रांस महिलाओं को महिला टीमों में खेलने से रोक दिया गया.
टेनिस संस्था डब्ल्यूटीए ने ट्रांस महिलाओं को महिला टेनिस में खेलने की अनुमति दी है, लेकिन इसके लिए शर्त है कि उनके शरीर में टेस्टोस्टेरोन का स्तर कम से कम 12 महीने तक 10 nmol/L से कम होना चाहिए. साथ ही प्रतियोगिता के दौरान यह स्तर तय सीमा के भीतर रहना चाहिए.
ब्रिटिश साइकलिंग ने पुरुष और महिला वर्ग की जगह अब ओपन और महिला वर्ग बनाए हैं, जिससे नॉन-बाइनरी और ट्रांसजेंडर खिलाड़ियों को ओपन श्रेणी में प्रतिस्पर्धा का विकल्प दिया गया है.

अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति ने 2004 में ट्रांस महिलाओं को महिला ओलंपिक खेलों में भाग लेने की अनुमति दी थी और इसके लिए कुछ शर्तें तय की थीं.
इन नियमों के अनुसार, ट्रांस महिलाओं को सेक्स रीअसाइनमेंट सर्जरी करानी होगी, क़ानूनी रूप से लिंग परिवर्तन करवाना होगा और हॉर्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी के दो साल बाद ही वे महिला खेलों में भाग ले सकती हैं.
लेकिन कई देशों में लिंग परिवर्तन सर्जरी की वैधता और व्यावहारिक कठिनाइयों को देखते हुए 2015 में इन दिशानिर्देशों को संशोधित किया गया और अब टेस्टोस्टेरोन स्तर को ही मुख्य मानदंड माना गया.
इन्हीं नियमों के तहत न्यूज़ीलैंड की वेटलिफ्टर लॉरेल हबर्ड को टोक्यो ओलंपिक 2020 (जो 2021 में आयोजित हुआ) में हिस्सा लेने की अनुमति मिली. वे ओलंपिक में भाग लेने वाली पहली ट्रांस महिला बनीं. हालांकि वो कोई पदक नहीं जीत सकीं.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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