राजस्थान की राजनीति में आदिवासी और अनुसूचित जाति वर्ग की अहम भूमिका को देखते हुए कांग्रेस ने एक बार फिर आदिवासी इलाकों में अपनी पकड़ मजबूत करने की कवायद शुरू कर दी है। हाल ही में उदयपुर और वागड़ क्षेत्र में हुए राजनीतिक सम्मेलनों और 'संविधान बचाओ रैलियों' को इसी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है।
दरअसल, राज्य की 200 विधानसभा सीटों में से 59 सीटें अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए आरक्षित हैं। इनमें से 34 सीटें SC और 25 सीटें ST वर्ग के लिए आरक्षित हैं। ये सीटें अक्सर सत्ता के समीकरण तय करने में निर्णायक साबित होती हैं। यही वजह है कि कांग्रेस अब इन वर्गों में अपनी खोई राजनीतिक पकड़ को दोबारा पाने के लिए सक्रिय हो गई है।
हालात बदले, कांग्रेस की चिंता बढ़ीपिछले कुछ चुनावों में इन वर्गों में कांग्रेस की पकड़ ढीली पड़ी है। खासतौर पर भारत आदिवासी पार्टी (BAP) जैसे नई क्षेत्रीय ताकतों के उभार ने कांग्रेस की चिंता को बढ़ा दिया है। भारत आदिवासी पार्टी ने बीते विधानसभा चुनावों में कई आदिवासी इलाकों में कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगाई, जिससे कई सीटों पर कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ा।
वहीं भाजपा ने भी इन इलाकों में खास रणनीति के तहत सक्रियता बढ़ाई है, जिसमें सामाजिक योजनाओं और संगठन स्तर पर मजबूत नेटवर्क खड़ा करना शामिल है।
कांग्रेस की रणनीति – सामाजिक न्याय और संविधान की रक्षाकांग्रेस का फोकस अब संविधान, सामाजिक न्याय और आदिवासी अधिकारों की बात को आगे रखकर स्थानीय जनभावनाओं को साधने पर है। राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा, नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली और प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा खुद इन क्षेत्रों में पहुंचकर कार्यकर्ताओं को सक्रिय करने में जुटे हैं।
डोटासरा ने स्पष्ट किया है कि कांग्रेस की नीति सदैव दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्ग के उत्थान की रही है, और पार्टी इन्हीं मुद्दों के सहारे फिर से जन विश्वास हासिल करना चाहती है।
'संविधान बचाओ' अभियान और संगठनात्मक मजबूती'संविधान बचाओ' रैली के माध्यम से कांग्रेस ने न सिर्फ राजनीतिक संदेश देने की कोशिश की है, बल्कि बूथ से लेकर ब्लॉक स्तर तक संगठन को मजबूत करने की कवायद भी शुरू की है। कार्यकर्ता सम्मेलन में स्थानीय मुद्दों, बेरोजगारी, वन अधिकार, शिक्षा, स्वास्थ्य और भूमि पट्टों जैसे ज्वलंत मुद्दों को प्रमुखता दी गई।
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