Next Story
Newszop

मुहर्रम पर अजमेर दरगाह में भव्यता का दृश्य! 40 किलो चांदी का ताजिया बना आकर्षण का केंद्र, देखने के लिए उमड़ा जनसैलाब

Send Push

मुहर्रम का महीना शुरू होते ही अजमेर शरीफ की फिजाओं में गम-ए-हुसैन की गूंज सुनाई देने लगती है। इस मौके पर सूफी संत हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में बना 40 किलो का चांदी का ताजिया आस्था और श्रद्धा का केंद्र बन गया है। दरगाह शरीफ के खादिम सैयद अलीम चिश्ती साजन बताते हैं कि ख्वाजा गरीब नवाज को इमाम हुसैन का वंशज माना जाता है, इसीलिए अजमेर दरगाह में मुहर्रम का विशेष महत्व है।

इस चांदी के ताजिया के बारे में खादमतगार डॉक्टर सैयद नजमुल हसन चिश्ती बताते हैं कि एक अकीदतमंद ने अपनी मुराद पूरी होने पर यह ताजिया भेंट किया था। इसे अजमेर में रहकर आगरा के कारीगरों ने तैयार किया था। अब यह ताजिया अजमेर ही नहीं, बल्कि दूर-दूर से आने वाले अकीदतमंदों के लिए भी आस्था का प्रतीक बन गया है। मकबरे के हॉल में सजी इमाम बारगाह में बड़ी संख्या में लोग पहुंच रहे हैं और जिक्र-ए-कर्बला कर मन्नतें मांग रहे हैं।

पीढ़ियों से कायम है परंपरा और सांस्कृतिक साझेदारी

राजस्थान के अन्य इलाकों में भी मुहर्रम को लेकर विशेष तैयारियां चल रही हैं। डीडवाना और कुचामन सिटी जैसे कस्बों में ताजिया बनाने की परंपरा पीढ़ियों से कायम है। मुबारक अली, मोहम्मद निजामुद्दीन और नाथू शाह जैसे कारीगर इसे सिर्फ पेशा नहीं बल्कि इबादत का रूप मानते हैं। यह परंपरा आज भी हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल पेश करती है।

प्रशासन की सतर्कता और भाईचारे की अपील

ताजिया जुलूसों के लिए जिला प्रशासन ने साफ-सफाई, सुरक्षा और रोशनी की व्यापक व्यवस्था की है। अजमेर पुलिस की ओर से भी शांति और सौहार्द बनाए रखने के लिए विशेष इंतजाम किए गए हैं। इस्लामी इतिहास में मुहर्रम को सच्चाई और न्याय के मार्ग पर चलने की मिसाल माना जाता है। इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों की शहादत आज भी मानवता को त्याग, धैर्य और न्याय की प्रेरणा देती है।

Loving Newspoint? Download the app now